चिड़िया और पेड़ की दोस्ती थी।
“चिड़िया, चिड़िया .. बड़ी चहक रही हो ? कहाँ उड़ती रहती हो आजकल !” पेड़ ने उत्सुकता के साथ पूछा।
“आजकल गाँव तो गाँव शहर भी शांत हैं, न धुआँ है, न शोरगुल। दाना-पानी भी खूब मिल रहा है” पेड़ से चिड़िया बोली।
“वो क्यों भला ” पेड़ ने जानना चाहा।
“अब तुम ठहरे जंगल के एक पेड़, दुनिया की तुम्हें कहाँ कोई खोज खबर होती है, चलो बताती हूँ– अभी सभी लोग घरों में बंद हैं, सुना है कोई जानलेवा विषाणु आया है उसके डर से।” चिड़िया ने उसकी जिज्ञासा शांत की।
“इतना ताक़तवर इंसान और डर !” पेड़ ने आश्चर्य जताया।
“हाँ भाई , मुझे भी अज़ीब लग रहा है , इंसानों ने तो हमारे हिस्से की चीजों पर भी बेखौफ़ अधिकार जमा लिया है- नभ , हवा, पानी, जंगल- कुछ भी नहीं छोड़ा। पर हाँ अब इस विषाणु ने मौत देकर डरा रखा है।” चिड़िया बोली।
“अब क्या होगा उसका।” पेड़ को जैसे चिंता सताई।
“अब शायद उसे अहसास हो जायेगा कि वह प्रकृति का स्वामी नहीं, बल्कि उसके परिवार का एक हिस्सा मात्र है। उसको अधिकार बाँटने होंगे और कर्त्तव्य समझने होंगे।” आशा भरी चिड़िया बोली।
पेड़ अपनी शाखाओं को हिलाकर मानों हामी भर रहा था।
— डॉ. अनिता जैन “विपुला”