लघुकथा

लघुकथा : रणनीति

“यह अपने राजा को क्या सूझा कि पूरे देश में महीने भर को सारी चीज़ों को बंद करा दिया,लोगों के घर से निकलने पर पाबंदी लगा दी । सारी गतिविधियों को लॉक करा दिया ।” रस्तोगी जी ने मेहरा जी से कहा ।
“भाई,यह सब बहुत ज़रूरी था । इससे कोरोना की बीमारी फैलने पर रोक लगेगी, क्योंकि यह बीमारी एक आदमी से दूसरे तक पहुंचती है न ।” मेहरा जी ने कहा ।
” और यह ताली-थाली से क्या फायदा होने लगा ,क्या इससे बीमारी डरकर भाग जाएगी ?” रस्तोगी जी ने फिर सवाल दागा ।
“अरे नहीं भाई  इससे बीमारी तो नहीं भागेगी, पर जो डॉक्टर ,कर्मचारी व पुलिस-प्रशासन के लोग इस बीमारी से लड़ रहे हैं, उन्हें हिम्मत व हौसला तो मिलेगा । वे यह सोचकर क्या दुगने उत्साह से अपनी ड्युटी पूरी नहीं करेंगे कि देखो सारा देश हमारे प्रति किस तरह से आभार प्रकट कर रहा है ?” मेहरा जी ने बात स्पष्ट की ।
“और यह दिया जलाने या उजाला करने से क्या होने लगा ? क्या इस उजाले से बीमारी का वायरस घबरा जाएगा ?”रस्तोगी जी कहां हार मानने वाले थे ।
“अरे भाई रस्तोगी जी दरअसल लोग इस बंदी से घबरा न जाएं, बीमारी के कारण डिप्रेशन में न आ जाएं, घर में घुसे -घुसे निराश न हो जाएं, इसीलिए यह आशा, उम्मीद व आत्मबल का उजाला था, जिसे हमारे देश के कर्णधार ने हमसे करने के लिए कहा था ।” मेहरा जी ने रस्तोगी जी को समझाते हुए कहा ।
पर रस्तोगी जी की अधीरता अभी पूरी नहीं हुई थी,सो उन्होंने फिर प्रश्न किया कि “आख़िर इस सबको आप क्या कहेंगे ?”
“बीमारी से सफलतापूर्वक लड़ने और सुनिश्चित जीत पाने की रणनीति ।” मेहरा जी ने एक शब्द में सारी तैयारियों को समेटते हुए कहा ।
— प्रो.शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]