कथा साहित्यलघुकथा

गणित

 

‘सुनो जी इस बार तो तुम्हारे बड़े साहब बुरे फँस गए …. सुना है बीस लाख लिए घूम रहे हैं बेचारे बहाल होने के लिए…’

‘हूँ …’ मैंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया

‘महीना भर तो हो गया घर मे बैठे… तुम्हे क्या लगता है मामला रफा-दफा होने में कितना समय लगेगा…?’

‘मुझे कैसे पता होगा…’

पत्नी के प्रश्न को टाल कर मैंने आँखे बंद कर ली। पर मस्तिष्क में अभी तक बड़े साहब का चेहरा और बातें कब्बडी खेल रही थीं।कल ही तो खीसे निपोरते हुए बड़ी बेशर्मी से दफ्तर में हँस कर बोले …’पाँच करोड़ रिश्वत डकारने के बाद… बहाल होने के लिए बीस लाख देना कौन सी बड़ी बात है। उस पर से तीन चार महीने का आराम मिलेगा सो अलग…’

मैं तो समझ गया था पर अपनी सीधी सादी घरेलू पत्नी को भला इतना गणित कैसे समझाता।

डॉ मीनाक्षी शर्मा

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा