गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

करोना के  कई मुजरिम ये सच जब जान लेते हैं।
किसी इक धर्म पर ही क्यूँ  निशाना  तान लेते हैं।
भरोसेमंद  साथी  बिन  अकेले  ही  चले अक्सर,
नहीं हरगिज़  कोई  भी  साथ में  नादान  लेते हैं।
दिल उसका तोड़ने की सोचनाभी पापकी मानिंद,
भले नुकसान हो  कितना  भी  बातें  मान  लेते हैं।
नहीं होती  ज़रूरत ही  दिमाग़ी  कसरतों की कुछ,
किसी  भी  रूप  में  आये  सनम पहचान  लेते हैं।
क़दम पीछे नहीं करते नफ़ा नुक़सान हो कितना,
कोई भी काम करने की जो दिल में ठान लेते हैं।
— हमीद कानपुरी

*हमीद कानपुरी

पूरा नाम - अब्दुल हमीद इदरीसी वरिष्ठ प्रबन्धक, सेवानिवृत पंजाब नेशनल बैंक 179, मीरपुर. कैण्ट,कानपुर - 208004 ईमेल - [email protected] मो. 9795772415