मेरे मन में सपने भरता ।
जादूगर है , डाले फंदा ।
क्या सखि, साजन ? ना सखि , चंदा। 1
लंबा कद है , चिकनी काया ।
उसने सब पर रौब जमाया ।
पहलवान भी पड़ता ठंडा ।
क्या सखि, साजन ? ना सखि , डंडा । 2
उससे सटकर , मैं सुख पाती ।
नई ताज़गी मन में आती ।
कभी न मिलती उससे झिड़की ।
क्या सखि, साजन ? ना सखि , खिड़की । 3
जैसे चाहे वह तन छूता ।
उसको रोके , किसका बूता ।
करता रहता अपनी मर्जी ।
क्या सखि, साजन ? ना सखि , दर्जी । 4
कभी किसी की धाक न माने।
जग की सारी बातें जाने ।
उससे हारे सारे ट्यूटर ।
क्या सखि, साजन ? ना , कंप्यूटर । 5
यूँ तो हर दिन साथ निभाये।
जाड़े में कुछ ज्यादा भाये ।
कभी कभी बन जाता चीटर ।
क्या सखि, साजन ? ना सखि , हीटर । 6
देख देख कर मैं हरषाऊँ ।
खुश होकर के अंग लगाऊं ।
सीख चुकी मैं सुख-दुख सहना।
क्या सखि, साजन ? ना सखि ,गहना । 7
दिन में घर के बाहर भाता ।
किन्तु शाम को घर में लाता ।
कभी पिलाता तुलसी काढ़ा ।
क्या सखि, साजन ? ना सखि , जाड़ा । 8
रात दिवस का साथ हमारा ।
सखि , वह मुझको लगता प्यारा ।
गाये गीत कि नाचे पायल ।
क्या सखि , साजन ? ना , मोबाइल । 9
मन बहलाता जब ढिंग होती ।
खूब लुटाता खुश हो मोती ।
फिर भी प्यासी मन की गागर ।
क्या सखि, साजन ? ना सखि , सागर । 10
बार बार वह पास बुलाता ।
मेरे मन को खूब रिझाता ।
खुद को उस पर करती अर्पण ।
क्या सखि, साजन ? ना सखि , दर्पण। 11
— त्रिलोक सिंह ठकुरेला