पुरजोर कहा था तुमसे
बचा लो इस धरती को
मत उजाड़ों इसका चमन
यहाँ जन्मा हर इंसान
हम सब इसकी संतान
पर युग बदलते ही
तुम लगे बदलने
स्वार्थ की दुनिया बसाने
भूलकर इंसानियत को
हैवानियत पर आ गए।
इस बेचारी का आवरण
खींच कर निर्वस्त्र कर दिया
पवित्रता को दूषित कर दिया
अपने अन्न-जल, फल-फूल से
किया पालन पोषण तुम्हारा
आँचल में पनाह देकर
स्वच्छ सांसें दी।
उसी के पवित्र जल को
कूड़े करकट से जहरीला किया तुमने,
छीना बसेरा अबोध पशु-पक्षियों का
समूल नष्ट करके
वृक्ष, पेड़-पौधों को
स्वर्ग सी धरती को
शमशान बना दिया।
कोशिश बहुत की समझाने की
पर न माने तुम,
महामारी कोरोना के आते ही
छिपना पड़ा तुम्हें नीड़ में।
अब पुनः स्वर्ग बनेगी धरती
स्वच्छ जल की नदियां
कल कल किल्लोल करेंगी,
उभरेगा वृक्षों,पेड़-पौधों का वजूद
चहुँ ओर असीम हरियाली की रेखा होगी,
तुम कैद पर पक्षी आज़ाद हो
कलरव करेंगे।
महामारी ने बचाकर धरती को
तुम्हारी सांसें बढ़ा दी
जब न सधा सीधी अंगुली से काम
तो प्रकृति ने कर दी टेड़ी अंगुली,
मना चुके बहुत पृथ्वी दिवस
अब हो सके तो इस माँ को बचा लो।
— निशा नंदिनी भारतीय