गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दीद करने न आओ कोई गम नही।
दूर से ही मगर गुनगुनाते रहो।।
याद आ जाये तुमको कभी तो सनम।
खत से रिश्ता हमारा निभाते रहो।।
बात है कुछ दिनों की मुहब्बत से तुम।
दिल की आवाज दिल को सुनाते रहो।।
आने वाली सुबह बीते दिनों से है।
बेहतर जानेमन गुनगुनाते रहो।।
पल दो पल रात काली है तो क्या हुआ।
जाने का शोक उसके मनाते रहो।।
है संगम ये तो सुख दुख का साथी मेरे।
आस का रोज दीपक जलाते रहो।।
मौत आनी है तो आयेगी इक दिन।
आज को बेहतर तो बनाते रहो।।
मुफलिसों, बेबसों और लाचारों का।
हो सके दर्द हंसकर मिटाते रहो।।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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