जब से हमारी सोच के पैकर बदल गये
तब से निशातो क़ैफ़ के मन्ज़र बदल गये
अह्सास के वो नर्म से बिस्तर बदल गये
इक शब के साथ साथ गुले तर बदल गये
दुनिया ने पहले लूट ली क़ुद्रत की आबरू
फिर यों हुआ कि वक़्त के तेवर बदल गये
फ़िक्रे सुख़न में ख़ून जलाता है कौन अब
बदला मिज़ाजे दौर सुख़नवर बदल गये
कोई किसी को भी नहीं पहचानता यहाँ
अज्ञात सब के काँधो पे अब सर बदल गये
— अजय अज्ञात