पृथ्वी दिवस पर विशेष गीत
मान इंसानियत का हम बढ़ा न सके।
अपनी प्रकृति को भी हम बचा न सके।
जीते -जीते जो दौलत कमाई मगर,
बाद मरने को जो हमको जो साथ ले जाना है।
एक पेड़ भी हम वो लगा न सके।
मान इंसानियत का हम बढ़ा न सके
अपनी प्रकृति को भी हम बचा न सके।
प्रेम इन्सान करता बहुत है मगर,
जिसने प्रेम भी करना सिखाया हमें ,
उस प्रेम को भी न पहचान सके।
मान इंसानियत का हम बढ़ा न सके।
अपनी प्रकृति को भी हम बचा न सके
सोच लो जिस दिन सूरज ये ढल जाएगा,
इन हवाओं का दौर गुजर जाएगा,
जिंदा न हम रहेंगे पानी के बगेर
काश ये दिन ये मौसम बदल न सके
मान इंसानियत का हम बढ़ा न सके ।
अपनी प्रकृति को बचा न सके।
— वीणा चौबे