एक अप्रासंगिक कवि की नज़र में हिंदुस्तान
दो पैर; दो सिर.
साथ दो जोड़ आठ; यानी दस हाथ.
शेष प्रांत हैं परिधान; दोनों आँचल लक्षदीप-अंडमान.
धोती ढील; चेहरा पिलपिल.
गंजे सिर पर चढ़ाकर बोझ पाल; उगे हिमलताओं से झाड़-बाल.
रहते उसपर गिद्धदृष्टिलीन; अपाक पाक-चीन.
पकाते दाल; बनाते कंगाल.
बह रहा बेवक़्त, हिन्द महासागरीय आँसू; तो अरबसागरीय खूं.
पत्रिपर्ण अवर्ण; पाकर भी स्वर्ण;
बन रहा भीखमंगा; बहाकर भी मैली गंगा.
मुम्बई, दिल्ली का दंगा; बन मदारी नाच नचा रहा नंगा.
लेप चेरी पॉलिस का कर; चेहरे पर.
रंगीन कपड़े में नील देकर; फटे कपड़े पर साट स्टीकर.
ईसा पर कील ठोंककर; झपटी आज बुलबुल ज्यों चील पर.
ठोंक रहा वह फटे ढोल पर ही ताल; बनकर कमीना, भड़ुआ, दलाल.
न तो संतरी; न मंत्री.
नीचे पदत्रावन; क्या पंडित थे रावण.
नहीं कोई शर्म; शतप्रतिशत है घपलेबाजी का बाज़ार गर्म.
पी रहे चाय रह-रहकर; मजदूर बनकर.
हम बुद्धम शरणम साँची; वो युद्धम गमनम लाहौर-कराची.
क्यों खाते छीनकर; जूठे में चुस्की लेकर.
वह सौ सफेद पिंजड़े; टंग रहे उनमें अस्सी बेईमान लँगड़े.
कश ले रहे पी-पी; पड़े-पड़े वो LGBTQ
वो मुच्छड़े मच्छरसाले; तेरे आदमी की भूख निराले.
वह पड़ोस की आँटी बेल रही हैं पापड़; सुंदरता के घर.
मिस वर्ल्ड में पर; खा चुके हैं झापड़.
गगनचुम्बी अवस्थित मनीप्लान्ट-सी लड़की; दिल ज्यों धड़की.
चर्चिल की चाची; मनु की झाँसी.
लिंकन की परिभाषा; एक और आशा.
कुतुबमीनार-सी नाक; गोलमिर्च-सी आँख.
उम्र में बड़े; ताजमहल से चेहरे.
सत्तू, प्याज औ’ नाइफ; कटे बाकी लाइफ.
एक थे गुजराती-घाँची; औ’ डाकिया की मुहर खाकर भी.
कर जीवन भर संधि; वह मेरे बापू अमर गाँधी.
लेनिन का शव, न्यूटन का सेब.
निषेध हो धुएँ-धुएँ; कूदते-फाँदते टूटे बोतल पर चूहे.
बंजर खेत पर; उगे बीजरहित जूट-अरहर.
रेस के घोड़े की चाबुक बनेगी; या फिर किसी शम्बूक पर पड़ेगी.
लक्षद्वीप-अंडमान में प्रकृति अच्छे; पर बिलबिलाते वहाँ बच्चे.
सार्थक शब्द के सच्चे; निरर्थक उड़ते उनके परखच्चे.
दो सूखे बज्र स्तन लिए बेसुध; चूँभर न दूध.
निर्जीव पत्थर व ठूँठ; ठोंकी सबकी खूँट.
विज्ञ बिहार अरु मरु राजस्थान; दोनों महान.
बस, यही है मेरी आन-बान- शान; मेरा प्यारा हिंदुस्तान.