पद्य साहित्यभजन/भावगीत

कोरोना चालीसा

■दोहा :
श्रीशुरु  कोरन  रोज  रज, निज  में पकड़ू कपारी;
नरनारू  रहबर  मल-मूत्र,  जो  दाई कुफल मारी।
बुद्धिहीन  मन   जानकर,  सुमिरन  वुहान-कुमार;
बल बुद्धि विदया लेहु मोहिं, काहु वयरस-विकार।
■चौपाई :
जय  कोरूमान  विपद  सप्तसागर;
जय कोरिस तिहुं परलोक उजागर।
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मृत्युदूत अतुलनीय बल धामा;
वुहानपुत्र    चीनसुत     नामा।
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अहा ! वीर पराक्रम रंगी-बिरंगी;
मति  मार   कुबुद्धि   के   संगी।
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कोरन   वरण    महीराज   उबेसा;
आनन-फानन कुंडल गंदगी लेशा।
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हाथमिलाऊ औ सजा विराजै;
कांधे    मौत   साँसउ   आजै।
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अंकड़-बंकड़ चीनीनंदन;
तेज ताप भगा जगरुदन।
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विद्यावान   गुणी   आ   चातुर;
मातम काज करिबे को आतुर।
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मृत्युचरित सुनबे  रंगरसिया;
इक मीटर निके  नन बसिया।
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अतिसूक्ष्म रूपधरि सिंह कहावा;
प्रकट  रूपधरि  कलंक  करावा।
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बीमा रूपधरि मौत दिलारे;
यमचंद्र    के    राजदुलारे।
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लाय  सजीवन  कोरन  भगायो;
पल-पल मौत अट्ठहास करायो।
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मृत्युपति इन्ही बहुत बड़ाई;
तुम अप्रिय सगा नहीं भाई।
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सहस   बदन  तुमसे  नाश  गवावै;
अस रही प्रेमीपति अंटशंट कहावै।
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सनकी  बहकी कह  मरीजसा;
गारद ज्यों भारत सहित लेशा।
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जम कुबेर अमरीका  योरप जहाँ ते;
कवि इंटरनेट डब्ल्यूएचओ कहाँ ते।
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तुम उपकार जो टीका खोजिन्हा;
कौन   बचाय  राज  पद   लीन्हा।
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तुम्हरो    मंत्र    सरकारन    माना;
नोरथ कोरियन भी कोरोना जाना।
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युग  सहस्र  कोरन  पर  भानू;
लील्यो जान मधुर फल जानू।
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ना हस्तिका ना मिलाय मुख माहीं;
जलधि  लांघि आये अचरज नाहीं।
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दुर्गम   लाज   जगत   को  देते;
सुगम समाजक दूरे तुम्हरे जेते।
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आराम अंगारे हम  रखवारे;
होत  न  इलाज बिन पैसारे।
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सब सुख गए तुम्हारी करणा;
तुम   भक्षक   तुहु   कोरोना।
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आपन तेज बुखारो आपै;
तीनों  लोक  तुमसे काँपै।
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भूत पि-चास  वायरस नहीं आवै;
सोशल  डिस्टेंसिंग  नाम  सुनावै।
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नाशक   रोग   तबे  जब  शीरा;
जपत निरंतर संयम अउ समीरा।
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संकट   पे   लोकडाउन   छुड़ावै;
मन कम वचन ध्यान जो दिलावै।
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सब पर वजनी कोरोना राजा;
काम-काज ठपल गिरी गाजा।
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और मनोरथ कछु नहीं पावै;
सोई किस्मत रोई कल जावै।
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कलियुग में  संताप तुम्हारा;
है कुसिद्ध संसार उजियारा।
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हंता-अंत भी नाश हुआरे;
घृणित तुम अँगार कहाँरे।
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अष्ट सिद्धि नौरात्र  सुहाता;
असीस लीन हे शक्तिमाता।
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दुर्लभ एन्टीडॉट किनके पासा;
क्यों  सदा  रह्यो  तुम्हरे  दासा।
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तुम्हरे  भजन  मृत्यु को पावै;
जनम-जनम के दुख दिलावै।
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अन्तकाल  मानव  क्या आई;
जहां जनम तहाँ मौत कहाई।
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और सोवता छोड़ तु भगई;
कोरोना सेइ सब सुख जई।
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संकट    कटै    मिटै   कब   पीड़ा;
किसे सुमिरै कि महामइरा अधीरा।
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जै जै जै कोरोना वायरसाई;
कृपा करहु  मुझपर  हे साई।
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जो संयम दूरी बरत मास्क लगाई;
छूटहि  व्याधिमहा  तब सुख होई।
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जो यह पढ़ै कोरोना वुहान चालीसा;
कोविड   नाइन्टीन   से  हुए  दूरीसा।
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पाल नंद सदा कर्फ़्यू संयम के चेरा;
कीजै  नाथ  अ-हृदय  अहम ने डेरा।
■दोहा :
वुहान तनय कब विकट हरन, मंगल तु  शक्तिरूप;
मम परिवार मित्र जगतसहित, दुरहु शीघ्र हउ भूप।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.