बालगीत : पैर
कितने अद्भुत अपने पैर!
नहीं किसी से करते बैर।।
सबको मंज़िल तक पहुँचाते।
ये दुनिया भर को करवाते ।।
मेला , हाट , बाग की सैर।
कितने अद्भुत अपने पैर!!
कर्म – इन्द्रियाँ इनको कहते।
भार देह का दोनों सहते।।
नहीं शत्रु की करते खैर।
कितने अद्भुत अपने पैर!!
तू चल !तू चल !!कभी न कहते।
स्वयं राह चल आगे रहते।।
चलने में क्या रखना धैर?
कितने अद्भुत अपने पैर!!
विद्यालय में ये पहुँचाते।
कभी वेन, रिक्शा से जाते।।
और नदी में भी लें तैर।
कितने अद्भुत अपने पैर!!
ऊँचे पर्वत पर चढ़ जाते।
सागर में गोते लगवाते।।
पेड़ , छतों पर करें न देर।
कितने अद्भुत अपने पैर !!
थककर नहीं शिकायत करते।
श्रम-सीकर थमकर ही हरते।
‘शुभम’ न समझें इनको गैर।
कितने अद्भुत अपने पैर!!
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’