बिहार में नियोजित शिक्षकों की हड़ताल
यह 13वां साल,13वीं लिए मरगिल्ला भात-सत्तू खाते बीत गए,
नियत पापड़ का नियोजित साइज, मानस-पटल पर छा गए.
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कहने को राष्ट्रनिर्माता, पर हर सरकारी काम कराते हैं,
सही मच्छरदानी लेने का भी औकात नहीं, मच्छरों से डंसवाते हैं.
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स्कूली छात्रों को साइकिल, नेपकिन, शिक्षाधिकारी को चाहिए वॉचर,
शिक्षक न सिर्फ़ नियोजित हैं, अपितु हो गए ठेकेदार, जंतु उभयचर.
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ऐसे में शिक्षकों पे गान कैसा ? सामाजिक शान, सम्मान कैसा,
पेट में ना हो चौबीस सौ कैलॉरी, तो गुणवत्तापरक शिक्षा हो कैसा ?
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बनिये के यहाँ से राशन छमाही, लिए बकाए और सूद कटाये,
अग्रज को मिले पेंशन-वेतनमान, तो हम उनके हनुमान भक्त कहाये.
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देकर स्कूल में आधा घंटा एक्स्ट्रा, कब्ज़ लिए पेट भी रहे डरा-डरा,
पोशाक राशि, छात्रवृत्ति में माथापच्ची, सोते में भी रहते खड़ा-खड़ा.
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बच्चों की रुचि कहानी में जब, तब रूटीन में आती अर्थशास्त्र घंटी,
हुए दस-पाँच मिनट लेट, तो मूढ़मगज शिक्षाधिकारी की पड़ी लंठी.
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अधिकारी निकालते शोकॉज़, दक्षिणा माँगते उनके ड्राइवरवा बंटी,
कुँवारे टीचर से माँगते स्क्रीनटच मोबाइल औ’ बीवी के लिए ब्रा-पेंटी.
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यह 13 साल तो आलू-सोयाबीन की सब्जी लिए दाँत भी सकपकाई,
दोस्त शिक्षकों के घर आज भी अरहर दाल ने मुँहफेर ठेंगा दिखाई.
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नियोजित शिक्षकों की मजदूरी बीपीएल से कम, ईद-डीपी भी दुःखी,
वेतनमानवाले अग्रज शिक्षक या शिक्षाधिकारी इनसे 500% सुखी.
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बिहार काहे कु विशेष राज्य, जो कि नौ मन तेल-फेर में नचाने चले,
वो है कुत्ते की पूँछ, जिसे हम पीपे सहारे सीधी क्यों कराने चले.
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उनकी सब्जी तो सब्जा कहलाती, भात तो भतार-पतवार है,
कोचिंग रजिस्टर्ड कराके कहते तब, नियोजित शिक्षक अवतार है.
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ख़ैर, अगर यही ज़िन्दगी है, तो यह उनकी भारी-भरकम दिल्लगी है,
जाते-जाते कर अभिनंदन, सभी नियोजित शिक्षकगण संग-संगी है.
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पीले पड़ चुके नियोजित शिक्षक, भय छोड़ कर एकता का वरण,
कर्ज लेकर कर चार्वाक भोजन, कि कब मिलेंगे वेतन हे भगवन ?
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