लघु कथा : लाॅक डाउन और दही
पप्पू के घर में कई दिनों से सबह शाम दाल और सब्ज़ी ही बन रही थी।आज सबका कढ़ी खाने का मन हुआ। कढ़ी के लिए सस्ता दही लेने के लिये पप्पू बादशाही नाका सब्ज़ी मण्डी की ओर साइकिल से चल पड़े। लाॅक डाउन की वजह से सुतरखाने मोड़ पर लगे पुलिस के जवान ने पप्पू को रोक लिया।
जवान– कहाँ जा रहे हो?
पप्पू — बादशाही नाका।
जवान — किसलिए?
पप्पू — दही लेने।
जवान– नाम क्या है?
पप्पू — पप्पू।
जवान — बाप का नाम?
पप्पू — ख़लील।
ख़लील सुनते ही पुलिस के जवान ने लाठी पप्पू की पीठ पर दे मारी। पप्पू साइकिल से नीचे गिर गये। उठकर साइकिल उठाई और वापस घर की तरफ चलने लगे।जवान ने एक लाठी और मारी जिसे पप्पू ने हाथ पर रोक लिया। मार खाकर पप्पू वापस घर आ गये। सूजे हुए हाथ पर पट्टी बाँधकर कराह रहे हैं। दही और कढ़ी का नाम तक भूल चुके हैं।लाॅक डाउन का मतलब ठीक से समझ आ गया है।तब से घर में रह कर चटनी रोटी खा रहे हैं।
— अब्दुल हमीद इदरीसी
लघुकथा को जानबूझकर साम्प्रदायिक रंग दिया गया है। यदि पप्पू के बाप का नाम खलील के बजाय खजान चंद होता तो भी उसे लाठी खानी पड़तीं और वापस जाना पड़ता।