संस्मरण

संस्मरण : वो होस्टल के दिन

बात उन दिनों की है जब हम परास्नातक करने गोरखपुर विश्वविद्यालय में पहुँचे।दाखिला मिलने के बाद रहने की समस्या आयी तो विश्वविद्यालय के महिला छात्रावास रानी लक्ष्मी बाई पहुँच गए।पर मैट्रन जी ने जगह नहीं है, कह कर बाहर का रास्ता दिखा दिया। पढ़ाई तो करनी ही थी लिहाजा अपनी एक स्नातक करते समय की मित्र के घर रुक गए।उसके पापा ने अगले ही दिन उसी छात्रावास में कमरा दिलाने का वचन दिया। तो चैन से हम दोनों सहेलियाँ अगले दिन की प्लानिंग करते हुए सो गए।
अंकल जी ने छात्रावास की सुपरिटेंडेंट के नाम खत लिखा और हम अपनी मित्र के साथ वीर सेनानी की भांति पुनः पहुँच गए रण में। इस बार मैट्रन ने मुँह तो खूब बनाया पर कमरा एक और लड़की के साथ एलॉट कर दिया कि अभी सिंगल कोई कमरा खाली नहीं और इस कमरे का पंखा भी खराब है।
खैर, हम तो कमरा मिलने से ही अति प्रसन्न थे। तुरन्त दोस्त ने एक टेबल फैन का जुगाड़ कर दिया और हम सेट हो गए।
रात आयी तो पता चला कि बगल के कमरे में एक शोध छात्रा (होस्टल की दादा टाइप) रहती है जो ड्रग वगैरह भी लेती है। उनके सामने रात में पेशी हुई। कौन हो, इसके कमरे में क्यूँ आयीं (मेरी रूममेट उनकी चहेती थी) किसी तरह निपटकर कमरे में गए।अपना पंखा लगाया सो गए। रात में गर्मी लगी तो पता चला कि पंखा चहेती जी ने अपनी तरफ कर लिया था। हमने फिर अपनी तरफ किया और सो रहे। किसी तरह रात कटी और सुबह विश्वविद्यालय जाने को तैयार हुए तो पता चला कि अटैची से रुपए भी गायब हैं।
फिर तो सारे नियम -संयम सीधे हवा में उड़ गए। सीधे मैट्रन के पास पहुँच गए। सारी बात बतायी और फौरन रुपए दिलवाने की जिद पकड़ ली। ऐसा नहीं हुआ तो होस्टल में ड्रग आने, चोरी आदि की सब बातें मैं अभी पुलिस में लिखवा दूंगी। तब तक अंकल और दोस्त भी पहला दिन होने के कारण मिलने आ गए। बात सुपरिटेंडेंट मैडम के पास पहुँची तो दीदी जी की पेशी हुई। फिर तो मेरा कमरा भी बदल गया। पैसे भी मिल गए और पूरा साल उन दीदी जी (शोधछात्रा) से अघोषित युद्ध चलता रहा। पर बाद में मैट्रन मेरे पक्ष में हो गईं,यह सुखद था।अभी कुछ वर्ष पहले जाना  हुआ तो एक बार में ही पहचान गयीं।
एक बात और बता दूँ कि दीदी जी भी आर्ट ऑफ लिविंग की टीचर बनी मिली मुझे 2019 में योग दिवस पर। नवअवतार में किन्तु नाम बदले हुए।