ग़ज़ल
कोई दिलकश बात नहीं है,
पहले से दिन -रात नहीं है।
हमने उनको इन्सां समझा ,
उनकी ये औकात नहीं है।
आँखों वाले हैं वे अंधे ,
आँखों में जज़्बात नहीं है।
कौन है अपना कौन पराया,
हमको ये ही ज्ञात नहीं है।
मुँह में राम बगल में छुरियाँ,
बोलो क्या ये घात नहीं है!
प्यार करो महसूस जहाँ में,
समझाने की बात नहीं है।
‘शुभम’ नदी की धार पलटता,
पानी की कोई जात नहीं है।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’