‘कतकी पूनो’ से गुरु नानक पूर्णिमा और आगे भी….
सनातन हिन्दू धर्मावलम्बियों के महान तीर्थ ‘गंगा स्नान’ की महत्ता कार्तिक पूर्णिमा के दिवा – रात्रि और भी बढ़ जाती है । आषाढ़ व शरद पूर्णिमा के दिन ‘वेदव्यास’ का जन्म हुआ था और इस पूर्णिमा को कालांतर में ‘गुरु’ पूर्णिमा कहा गया, किन्तु वेदव्यास के जन्म से पहले कार्तिक पूर्णिमा यानी अपनी ‘कतकी पूनो’ ही गुरु पूर्णिमा के रूप में अभिहित थी । वैसे कार्तिक माह भगवान महेश्वर शिव के ज्येष्ठ पुत्र ‘कार्तिक’ के इन अवधि में जन्म लेने के कारण पड़ा है । वो जन्म अवधि कोई कार्तिक पूर्णिमा को मानते हैं अथवा बांग्ला संवत के अनुसार ‘संक्रांति’ को, जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष ’17’ तारीख को पड़ता है, माह प्रायः नवम्बर ही रहता है।
ख़ैर, जो हो ! परंतु कार्तिक पूर्णिमा में गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु महेश्वर की अर्चना – पूजा की जाती है और इसके एतदर्थ ‘माँ गंगा’ की नदी में स्नान कर आस्था निवेदित करते हैं, श्रद्धा से त्रिदेव सत्ता में अपने को लीन कर देते हैं । मैं गंगा के अंतेवासी क्षेत्र मनिहारी में रहकर अपने को चिरनीत और गर्वान्वित माना है।
कार्तिक पूर्णिमा की महत्ता नानकदेव के जन्म लेने के कारण भी है । ननकाना / तलवंडी के नानक का जन्म अखण्ड भारतवर्ष में, किन्तु आज के पाकिस्तान में हिन्दू बनिया के यहाँ हुआ था, किन्तु कृपण बनिया घर में ऐसे बालक का जन्म, जो आगत साधुओं व अतिथियों को खाली हाथ लौटाते नहीं थे । ऐसी फ़क़ीरता के वशीभूत हो नानक भिक्षाटन को निकल गए और एक जगह सो गए, किन्तु मुस्लिम लोगों ने उनसे कहा कि तुम उधर पैर करके क्यों सो रहा है, उधर मेरे अल्लाह है । तब नानक ने कहा– जिधर तुम्हारे अल्लाह नहीं होंगे, उधर ही मेरे पैर कर दो । ऐसा कहा जाता है, जिधर उनके पैरों को किया गया, उधर ही पश्चिम रहा !
वैसे हिन्दू धर्म के प्रति भी उनकी ऐसी ही कथा श्रुत है । मुस्लिमों के प्रति भी वर्णित कथा श्रुत ही थी । नानक ने अलग पंथ चलाया, जिनका नाम ‘सिख’ रखा । आज सिख धर्म के अनुयायी सम्पूर्ण संसार में है । सम्पूर्ण उत्तर भारत, पाकिस्तान आदि में सिख धर्मावलम्बी हैं, पंजाब तो गढ़ है । बिहार के कटिहार ज़िले के बरारी क्षेत्र के उचला भण्डारतल में सिखों की बस्ती है । सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक से लेकर 10वें गुरु तक हुए । गुरु गोविंद सिंह के बाद गुरु परंपरा को समाप्त कर इस पंथ के धर्मग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को गुरुओं के गुरु मान-सम्मान आस्था और श्रद्धा उनकी साथ जुड़ चुकी है।