ताजमहल के निमाता कौन थे, यह यक्षप्रश्न नहीं बननी चाहिए !
विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं के भारत में प्रवेश यहाँ की संपत्ति और स्थापत्यों को लूटने के उद्देश्य से ही हुए थे ! वे सब मुगलों के मातृ और पितृ पक्ष के अग्र-वंशज (पूर्वज) थे और वे भी प्रथमतः भारत को लूटने के ख्याल से ही देश के हिन्दू राजाओं (सिर्फ ‘राजपूत’ नहीं, स्थान विशेष लिए ‘अन्य’ भी) पर आक्रमण किये थे । भारत का विस्तार तब पश्चिम एशिया तक था और देश की सीमा ईरान से लगी थी, अन्यार्थ ईरान भी विस्तीर्णता लिए सम्पूर्ण भारतवर्ष में ही था, तब वह आर्यावर्त्त था यानी आर्यावर्त्त की सीमा यूरोप तक थी । … और पश्चिम एशिया का यह हिस्सा यूरोप से सटा था । …. तो पश्चिम एशिया और यूरोप से ये आक्रांता आये थे !
….परंतु हुमायूँ को बार-बार हारने के बावजूद इस देश से ज्यादा ही मोह हो गया, जिन्हें कालक्रम के दौरान हिन्दू वृद्धा (जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘ममता’!) ही मौत के मुँह से बचाया था । बाद में अकबर ने हिन्दू महिलाओं से शादी भी रचाये और इसके बाद तो मुगल यहीं के रह गए । चूँकि भारत मंदिरों और अध्यात्म का देश के रूप में ख्यात है और मुगल व अन्य मुस्लिम आक्रांता इस्लाम धर्मावलम्बी थे, जो कि इस्लाम को जबरदस्ती अपनाए जाने को जोर देते थे । ऐसे में नादिरशाह, तैमूरलंग’से कृत्य वे कर बैठे हों, जिसे नकार भी तो नहीं सकते ! …. तो ताजमहल आदि के पूर्व मंदिर होने संबंधी श्रुत बातों को खारिज़ भी कतई नहीं की जा सकती ! यद्यपि जमीन पर नींव और खुदाई से प्राप्त कई सामग्रियों को देखकर माननीय उच्चतम न्यायालय ने कथित ‘बाबरी मस्जिद’ को मन्दिरजन्य साक्ष्य माना, तथापि इस सुंदरतम कृति (ताजमहल) के लिए यह साक्ष्यप्रयास नहीं होनी चाहिए !
मुगलकाल में हिन्दू की अधिसंख्यक आबादी हमेशा भूखजीवी और भयजीवी रहे थे, ऐसे में भूख-भयजीवी आदमी हमेशा वर्त्तमान की सोचता है । हम ‘ताजमहल’ को भी वर्त्तमान में देख रहे हैं । … और भूतों की बस कल्पना ही की जा सकती है । वाम इतिहासकारों को, जो सर्वाधिक संख्या में रहे हैं, हिन्दू होकर भी उन्हें हिन्दू संस्कृति कभी नहीं भाया, तो उनसे क्या अपेक्षा रखी जा सकती थी ? बावजूद, आज ‘ताजमहल’ भारत की आन, बान और शान है ! निर्माता कोई भी रहे हो, किन्तु ऐसी उत्कृष्ट ‘भवन कला’ को विश्व स्तर में कोई भी दुबारा हूबहू निर्माण नहीं कर सकता है। यह दुनिया का 8वें अजूबे सच में है।