20वीं सदी के बुद्ध थे ‘महर्षि मेंहीं परमहंस’
उत्तर भारत सहित नेपाल, भूटान आदि देशों तक प्रसारित संतमत परम्परा के प्रख्यात संत महर्षि मेंहीं के पितृ घर सिकलीगढ़ धरहरा, जो पूर्णिया जिला में है और जन्मभूमि यानी ननिहाल खोखसीश्याम, जो मधेपुरा जिला में है, किंतु उनकी कर्मभूमि कटिहार जिले के नवाबगंज और मनिहारी रही । नवाबगंज में संतमत सत्संग मंदिर 1930-31 में स्थापित हुई थी, तो मनिहारी में सत्संग मंदिर 1936 में बनी है, अपितु महर्षि मेंहीं के मुख्य निवास नवाबगंज मन्दिर रहा । मनिहारी कुटी में तो गंगा स्नानादि के तत्वश: जाते रहे । महर्षि मेंहीं का जन्मोत्सव 1945 में पहलीबार नवाबगंज सत्संग मंदिर में ही मनी थी।
बिहार के मधेपुरा जिले में जन्म, पूर्णिया जिला स्कूल में पढ़ाई, कटिहार जिला (नवाबगंज, मनिहारी) कर्मभूमि, कुप्पाघाट (भागलपुर) में ज्ञान-प्राप्ति वाले संत महर्षि मेंहीं को महात्मा बुद्ध के अवतार माने जाते हैं । सौ साल पाकर 1986 को महापरिनिर्वाण पाये। इनकी उल्लेखनीय आध्यात्मिक-पुस्तकों में ‘सत्संग-योग’ की चर्चा चहुँओर है, यह चार भागों में है । इसे भौतिकवादी व्यक्तियों को भी पढ़ना चाहिए । मैंने भी चौथे भाग की समीक्षा किया है । ऐसे संत-शिरोमणि के बारे में देश-विदेश के कई विद्वानों ने चर्चा किये हैं, यथा:-
1. श्री मेंहीं जी संतमत के वरिष्ठ साधक हैं– महात्मा गांधी।
2. महर्षि मेंहीं शान्ति की स्वयं परिभाषा है– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।
3. पूज्य मेंहीं दास जी एक आदर्श संत हैं– डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन्।
4. महर्षि मेंहीं परमहंस जी विलक्षण संत होते हुए भी एक प्रसिद्ध साहित्यकार हैं–आचार्य शिवपूजन सहाय।
5. श्री मेंहीं जी के ध्यान-योग-विशेषता सचमुच में महान है– संत विनोबा भावे।
6. बुद्ध, आचार्य शंकर, ईसा, मुहम्मद, नानक, रामानंद, कबीर, चैतन्य, महावीर जैन, महर्षि देवेन्द्र नाथ ठाकुर, सूर, तुलसी, रामकृष्ण परमहंस, समर्थ रामदास प्रभृति परामसंतों की परम्परा के श्रेष्ठ लोकसेवी तो हमारे पूज्य महर्षि मेंहीं परमहंस जी हैं– गुलजारी लाल नंदा।
7. मैं पूज्यपाद महर्षि मेंहीं जी के साथ मात्र दो-तीन दिन ही रहा । मुझे ऐसा मालूम हो रहा है की मैं साक्षात् बुद्ध भगवान का ही दर्शन कर रहा हूँ– बौद्ध भिक्षु जगदीश काश्यप।
8. पूज्य गुरु महाराज महर्षि मेंहीं सम्पूर्ण विश्व-संस्कृति के ध्रुवतारा हैं– डी. हॉर्वर्ड (अमेरिका)।
9. महर्षि मेंहीं जी के साहित्य की आध्यात्मिक विशेषता यह है कि व स्वयं संत होकर संत साहित्य के सम्बन्ध में अपना आचार-विचार प्रकट किये हैं– राहुल सांकृत्यायन।
10. महर्षि मेंहीं श्रद्धेय एवम् आराध्येय हैं– मदर टेरेसा।
11. महान संत महर्षि मेंहीं को सादर स्मरण– दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, आज, प्रभात खबर, आर्यावर्त्त, आमख्याल इत्यादि समाचार पत्र।
वैशाख पूर्णिमा को महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था और वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को महर्षि मेंहीं का । दोनों की जयंती मनाई गई । ध्यातव्य है, बिहार के मधेपुरा जिले में जन्म, पूर्णिया जिला स्कूल में पढ़ाई, कटिहार जिला के नवाबगंज, मनिहारी को कर्मभूमि बनाये, तो कुप्पाघाट, भागलपुर में ज्ञानप्राप्त करने वाले संत महर्षि मेंहीं को महात्मा बुद्ध का अवतार भी माना जाता है । दोनों संत-महात्मा में कई विशेषताएं समय थी । सौ साल की उम्र पाकर 1986 में महर्षि मेंहीं महापरिनिर्वाण को प्राप्त किये । इनकी उल्लेखनीय आध्यात्मिक-पुस्तकों में ‘सत्संग-योग’ की चर्चा चहुँओर है, यह चार भागों में है । महात्मा बुद्ध की रचना ‘धम्मपद’ भाँति ‘सत्संग योग’ का भी बड़े नाम हैं । बीसवीं सदी के संत महर्षि मेंहीं की चर्चा महात्मा गांधी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, संत विनोबा भावे, आचार्य शिवपूजन सहाय, मदर टेरेसा, डॉ. रामधारी सिंह दिनकर इत्यादि सहित पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी किए है।
ऐसे इस महान संत की जन्म-जयंती पर बिहार के मात्र 5-6 जिले के सत्संग प्रेमी ही इन्हें याद करते हैं ।इनकी महत्ता को हमारे युवा पीढ़ी जान सके, इसके लिए बिहार सरकार को इनके बारे में पाठ्य पुस्तकों में चर्चा करनी चाहिए, ताकि महान पुरुष की महत्ता से युवा पीढ़ी अनभिज्ञ न रह सके!