रिश्तों को सहेजती नारी
आज भी कहीं…
दूर गावों में
आधुनिकता और दिखावे से दूर
दिखते हैं आत्मीयता से भरे रिश्ते
और उन रिश्तों को …
सहेजती नारी ।
कभी पनघट पर पानी भरती
कहीं पशुओं की सेवा करती
स्नेह से अपने, रिश्तों को सजाती
सोंधी माटी में खाना बनाती
कच्ची मिट्टी की तरह…
ढल जाए हर सांचे में
निभाए हर किरदार ,
कच्ची कुटिया में भी
मजबूती से बांध लेती है वो …
स्नेह-संबंध के रिश्ते ।
अंजु गुप्ता