ग़ज़ल
न जाने क्यों अजीब सी ख़ामोशी है,
चेहरे पर हंसी मगर आंखों में नमी सी है।
यूं तो हजारों की भीड़ है मेरे आस पास,
लेकिन तुम नहीं हो तो इक कमी सी है।
सांसों का आना जाना जारी है मगर,
तुम्हारे बिना मेरी धड़कनें थमी सी हैं।
आजकल यह महसूस होता है मुझे,
पास नहीं तुम फिर भी तेरी मौजूदगी सी है।
रूह के रिश्ते दूरियों से मिट नहीं जाते,
मिलेंगे हम कभी,इस बात की तसल्ली सी है।
— कल्पना सिंह