अमर शहीद कुँवर सिंह : अगर 25 वर्ष की आयु में ही हथियार उठाए होते !
क्या हम ‘कुँवर सिंह’ को ‘वीर’ के रूप में याद करें या ‘बाबू’ के रूप में याद करें?
क्या ‘स्वतंत्रता सेनानी’ के रूप में याद करें?
क्या ‘बड़े जमींदार’ के रूप में याद करें?
उनकी अवस्था जब 80 वर्ष की थी और तब उन्हें लगा, अंग्रेज उनकी जमींदारी और रियासत को छीन लेगा, तब वे अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा लिये !
अगर वे 30 वर्ष की आयु में ही हथियार उठाए होते, तो आज़ादी बहुत पहले मिल सकती थी ! किन्तु हम यह भी तो सोच सकते हैं कि युवाओं की अकर्मण्यता के कारण ही उन्हें वयोवृद्धावस्था में हथियार उठाने पड़े ! भले ही वे प्रथमतः अपनी जमींदारी बचाने को लेकर इस अवसर को ‘राष्ट्रीय फ़्रेम’ में रखकर ‘प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ में वयोवृद्ध अवस्था में कूदने से जहाँ युवाओं को प्रेरणा मिली !
कविवर व प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद सिंह द्वारा रचित वीर शहीद कुँवर सिंह पर अद्भुत कविता ‘कुँवर सिंह भी बड़े वीर मर्दाने थे’ प्रकाशित है, जो कभी कक्षाओं में पढ़ाई जाती थी। यह कविता बिल्कुल ही कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसीवाली रानी थी’ से प्रेरित है ! जब ‘कुँवर सिंह भी बडे वीर मर्दाना था’ नामक कविता लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी के संपादन में निकलने वाली पत्रिका ‘युवक’ (1929) में छपी, तो ब्रिटिश सरकार ने इसे तत्काल प्रतिबंधित कर दिया। इस कविता की शुरुआत कुछ इस प्रकार है–
“था बूढा पर वीर बाँकुड़ा कुँवर सिंह मर्दाना था।
मस्ती की थी छिड़ी रागिनी आजादी का गाना था,
भारत के कोने कोने में होता यही तराना था।
उधर खड़ी थी लक्ष्मीबाई और पेशवा नाना था,
इधर बिहारी-वीर बांकुड़ा खड़ा हुआ मस्ताना था।
अस्सी बरस की हड्डी में जागा जोश पुराना था,
सब कहते हैं, कुँवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।”
और अंतिम पंक्ति इस प्रकार है–
“दुश्मन तट पर पहुंच गए, जब कुँवर सिंह करते थे पार,
गोली आकर लगी बांह में, दायां हाथ हुआ बेकार।
हुई अपावन बाहु जान, बस काट दिया लेकर तलवार,
ले गंगे यह हाथ आज तुझको ही देता हूं उपहार।
वीर-भक्त की वही जान्हवी को मानो नजराना था,
सब कहते हैं कुँवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।”