अल्पायु प्राप्त गणितज्ञ रामानुजन के वृहदतम गणितीय अवदान !
9^{3}+10^{3}=1^{3}+12^{3}=1729,
2^{3}+16^{3}=9^{3}+15^{3}=4104,
10^{3}+27^{3}=19^{3}+24^{3}=20683,
2^{3}+34^{3}=15^{3}+33^{3}=39312,
9^{3}+34^{3}=16^{3}+33^{3}=40033,
इसप्रकार से 1729, 4104, 20683, 39312, 40033 इत्यादि ‘रामानुजन संख्याएं’ हैं।
श्रीनिवास रामानुजन धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और हिन्दू देवी-देवताओं से अतिशय श्रद्धा रखते थे ! कई खोज को उन्होंने सपने (स्वप्नावस्था) की देन माना ! वे कहते थे कि उनकी कुलदेवी स्वप्नों में आकर जटिल प्रमेयों और उनके साक्ष्य, हल आदि बता जाती थीं !
हिंदी मासिक ‘विज्ञान प्रगति’ के दिसम्बर 2019 अंक को गणित विशेषांक कहा जाय, तो कतई गलत नहीं होगी ! प्रकाशित उपलब्धियाँ में नोबेल पुरस्कार 2019 के बारे में आमुख कथा है, जिनमें लेखिका ने विज्ञान के क्षेत्र में पुरस्कर्ताओं और उनके अवदानों के बारे में वर्णन की है । काश, वे भारतीय मूल के अर्थशास्त्री और उनकी पत्नी को मिले अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार के बारे में भी जानकारी देते ! विज्ञान प्रगति के इस अंक की दूसरी प्रकाशित उपलब्धि ‘भारतीय गणित : इतिहास के झरोखे से’ है । कभी विज्ञान प्रगति में मेरे भी दो गणितीय आलेख प्रकाशित हुए थे, एक– ‘कुछ सोचनीय गणितीय उलझनें’ हैं, तो दूजे– ‘वैश्विक गणित में भारतीय गणितज्ञों की स्थिति’ नामक आलेख है ।
मुझे लगता है, दिसम्बर 2019 में प्रकाशित श्री मिलिंद साव के गणितीय आलेख तो मेरे प्रकाशित आलेख की द्वितीय कड़ी है । आलेख में प्राय: बातें पुरानी कही गई है । हाँ, कुछ नवीन जरूर है, परंतु आलेखक ने ‘अभाज्य संख्या’ को लेकर कई भारतीय गणितज्ञों के अवदानों को नहीं बताए हैं । सम्पूर्ण संसार के गणितज्ञ और थोड़े-बहुत गणित के जानकार भी ‘अभाज्य संख्या’ व प्राइम नंबर्स ज्ञात करने के नाम से परेशान और आक्रान्त रहा है, इस संख्या से आतंकित रहा है । भारत ‘संख्या-सिद्धांत’ व नम्बर थ्योरी के मामले में अद्भुत जानकार देश रहा है । वैसे दिसम्बर माह की 22 तारीख को महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जन्म-जयंती रही, जिसने 33 वर्षीय अल्प-जीवन में ही ‘संख्याओं’ पर प्रमेय दिए, जिनके जन्मदिवस पर भारतवर्ष ‘राष्ट्रीय गणित-दिवस’ भी मनाते हैं । इनके नाम पर कई संस्थाएँ और पुरस्कार हैं, परंतु ‘अभाज्य-संख्या’ पर इनका रिसर्च अधूरा ही रहा था।
बाल्यावस्था से मैंने भी संख्या-सिद्धांत पर अनथक कार्य करते आया है । इस हेतु ‘सदानंद पॉल की गणित-डायरी’ का प्रथम संस्करण मात्र 11 वर्ष की अल्पायु में छपा था, तो द्वितीय संस्करण 1998 में प्रकाशित हुई थी, जिनमें Y2K समस्या के समाधान का भी जिक्र था । पाई का निकटतम मान 22/7 है, किंतु पाई के समानांतर मान 19/6 सहित फ़र्मेट के अंतिम प्रमेय की काट, नॉन कोपरेकर कांस्टेंट यानी यूनिक संख्या 2178 इत्यादि की खोज सहित हजारों प्रमेयों पर अनथक कार्य किया है । एक गणितीय प्रश्नों को ट्रिकी विधि से पहले 1600, फिर 5124 तरीके से बनाने भी शामिल हैं। वहीं अभाज्य संख्या जानने के तरीके पर 10 वर्षों से भी अधिक समयों से शोध-कार्य करते आया है।
भारत के अधिकाँश विश्वविद्यालयों में नम्बर थ्योरी के जानकार नहीं हैं और उच्च तकनीक वाले कंप्यूटर बिहार के किसी भी विश्वविद्यालय में नहीं हैं, अन्यथा परिणाम और भी सटीक आता ! फिर भी मेरी गणित-डायरी गणित के सामान्य से सामान्य विद्यार्थी के हित में है । तभी तो गणितीय विश्लेषण में सम, विषम और अभाज्य संख्यायें प्रमुख भूमिका में होते हैं । ये कहा जाय तो गलत नहीं होगा कि यह तीनो संख्याओं के वजूद पर ही गणित के प्रमेय आधारित हैं, तो जीरो भी खुद में एक संख्या है, इसे आदिसंख्या भी कहा जाता है । वहीं रामानुजन ने 1729 नामक संख्या की खोज कर पूरी दुनिया में छा गए ! शायद अन्य विषयों में कमजोर रहने के कारण रामानुजन मैट्रिक पास भी नहीं कर पाए थे, हालाँकि बाद में उनके शोध-पत्रों के आधार पर उन्हें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने सीधे मानद ‘बैचलर डिग्री’ प्रदान किये! इसलिए विज्ञान प्रगति, दिसम्बर 2019 अंक के आलेखक ने रामानुजन के मैट्रिक पास का जिक्र किया है, वो गलत है। विदित है, मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के मुंशी वे नन-मैट्रिक आधार पर थे !
‘संसार के महान गणितज्ञ’ पुस्तक में डॉ. गुणाकर मुले ने इस संबंध में श्रेयस्कर जानकारी दिए हैं । वहीं विज्ञान प्रगति के इस आलेख के लेखक ने यह भी गलत जानकारी दी है कि भास्कराचार्य के बाद से जिस भारतीय गणित का विकास अवरुद्ध हो गया था, उसे श्रीनिवास रामानुजन ने पुन: प्रशस्त कर दिया, जबकि यह कहना गलत है, क्योंकि सिर्फ़ रामानुजन ने ही नहीं, अपितु हरीश चंद्रा, डी आर कापरेकर से लेकर डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह, प्रो. विनयकुमार कंठ, डॉ. बाल गंगाधर प्रसाद, डॉ. के सी सिंहा, प्रो. अजिताभ कौशल इत्यादि ने भी भारत गणितीय अन्वेषण को महत्वपूर्ण जगह पर पहुंचाए हैं।
आलेखक मिलिंद जी द्वारा शकुंतला देवी के प्रमेयों, सूत्रों व फॉर्मूलादि का जिक्र भी तो किये जाने चाहिए थे। इसके साथ ही एक आग्रह है कि विज्ञान प्रगति को भारतीयों के प्राथमिक रिसर्च को भी प्रकाशनार्थ जगह देनी चाहिए। इस अंक की सम्पादकीय ‘सिंगल यूज प्लास्टिक मुक्त भारत’ एक मुहिम है, जिनके लिए जनसरोकार सहित जनांदोलन की महती आवश्यकता है !