नक्षत्र मालाकार पर कई किंवदंती है, जो गलत है !
स्व. नक्षत्र के बेहद निकटतम सम्बन्धी स्व. मोरध्वज मालाकार और स्व. जितेन्द्रनाथ वर्मा के परिवार का आवास और मेरे घर के बीच की दूरी मात्र 20 कदम है, जो मेरे ही वार्ड में है । मैंने अपने दादाजी, मोरध्वज दादा, जीतेन दादा इत्यादि से इनके बारे में जाना, खुद गवाह भी रहा । स्व. नक्षत्र कभी चरवाहा नहीं रहे ! नाक-कान काटे जाने की बात सिर्फ महाजनों, जमींदारों आदि द्वारा फैलाई गई है, ताकि ब्रिटिश पुलिस उन्हें जल्द से जल्द गिरफ्तार कर ले ! क्षेत्र के बूढ़े-पुराने लोग ऐसा कुछ नहीं जानते ! किन्तु उन्हें रॉबिन हुड के तौर पर जरूर जानते हैं कि वे धनियों से धन इकट्ठा कर गरीब की बेटियों के ब्याह हेतु बाँट दिया करते थे ! इस अलख कृतित्व के स्वामी रोबिन हुडी छवि से आगे बढ़कर भारत के स्वतंत्रता सेनानियों की क्षत्रप पंक्ति में आकर जम गए !
आँचलिक उपन्यासकार स्व. फणीश्वरनाथ रेणु जी ने ‘मैला आँचल’ में ‘चलित्तर कर्मकार’ के रूप में इन्हें लेकर जो जानकारी दी है, वो पूर्णतः सही नहीं है, उनके बारे में जो रिपोर्ताज़ में प्रकाशित है, उनमें भी कई खामी हैं ! उनके बारे में सही तथ्य प्रस्तुत नहीं किया गया है । स्व. नक्षत्र के बेहद निकटतम सम्बन्धी स्व. मोरध्वज मालाकार और स्व. जितेन्द्रनाथ वर्मा के परिवार का आवास और मेरे घर के बीच की दूरी सिर्फ़ एक मिनट है यानी उनके रिश्तेदार मेरे ही वार्ड में है । स्व. नक्षत्र कभी चरवाहा नहीं रहे ! उनके वेश में जरूर रहते थे, ताकि ब्रिटिश पुलिस उनतक पहुँच न पाए !
बिहार के प्रेमचंद कहे जानेवाले व स्व. नक्षत्र के पड़ौसी रहे साहित्यकार अनूपलाल मंडल ने अपने उपन्यास ‘तूफान और तिनके’ में नक्षत्र मालाकार के बारे में बारीकी से तथ्य समंजित किये हैं! इस अलख कृतित्व के स्वामी पर मैं एक किताब लिख रहा हूँ ! उनके रक्तसम्बन्ध के पोते श्री विमल मालाकार ने अपने सोशल मीडियाई पोस्ट पर नक्षत्र मालाकार से सम्बंधित संस्मरण प्रसारित किया है कि किसतरह स्व. नक्षत्र की धर्मपत्नी स्व. रमणी देवी, जो श्री विमल जी द्वारा दादा की सेवाभावना से अप्रभावित रही और उसे दत्तक न माने व जमीन में हिस्सा न मिले, एतदर्थ स्व. नक्षत्र का इलाज़ भी सही तरीके से नहीं हुआ, तो दाह संस्कार भी आनन-फानन में कर लिया गया ।
ध्यातव्य है, तब सोवियत संघ सरकार ने इस महान स्वाधीनता सेनानी को मास्को में आने को लेकर आमंत्रित भी किया था और तब उनके साथ श्री विमल मालाकार भी जाते ! अशिक्षा के कारण भी लोगों को उनके जन्मदिन याद नहीं रहते थे। नक्षत्र की भी वास्तविक जन्म तिथि अनुमान पर ही तय की गई होगी। उनके घर बरारी में उनकी ही पहल पर स्थापित ‘भगवती मन्दिर महाविद्यालय’ के रजिस्टर में उनका जन्म 9 अक्टूबर, 1905 दर्ज है। यह प्रमाण स्वयं नक्षत्र जी ने ही कॉलेज को उपलब्ध करवाया था।
लोग बतलाते हैं कि 27 सितंबर, 1987 को उनकी मौत हुई। उस समय वे 82 वर्ष के थे। इस दृष्टि से भी 1905 का वर्ष ही उनके जन्म का वास्तविक वर्ष प्रमाणित होता है। उनके परिजन इसके पक्ष में एक और सबूत वासुदेव प्रसाद मंडल (पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री) का पेश करते हैं, जिनकी जन्म तिथि 1903 है। नक्षत्र उनसे 2 साल छोटे थे। दोनों घनिष्ठ थे, लंबे अरसे तक एक साथ काम किया।”
प्रश्न है, स्वतंत्र भारत में भी नक्षत्र मालाकार 14 या 18 साल जेल में क्योंकर रह गए ? उनके कोई क्यों नहीं देखनहारा रहा ? यह प्रश्न हमेशा ही अनुत्तरित रहेगा!