लघुकथा – “ऊर्जावान सुख”
विधार्थी निमित का अपने प्रोफैसर को फोन, “मैम्, मैं लांकडाउन में बहुत खाली बैठा दुखी हो रहा हूँ. घर में सारा दिन संगीत सुन कर भी तंग आ गया हूँ, क्या करें.” प्रोफैसर प्रेरणा, “ ओफ ! इस वायरस की वजह से सलाना परीक्षा तो हो नहीं सकती. वो तो जैसे हमें आदेश होंगे आप सब बिधार्थियो को सूचित कर देंगे. आप अब कुछ समय अपनी सेहत और मानसिक मजबूती में क्यों नहीं लगाते. हर ऊर्जावान व्यक्ति अपनी योग क्रिया के द्बारा शक्तिमान और संयमित बन सकता है.” विधार्थी निमित, “मैम्, आपका योग करना आपकी जिंदगी कि कामयाबी का श्रेय लगता है. इसलिए हर परिस्थिति में खुद को सम्भाल उसका सामना करती हैं. आप कैसे नियमित बनी रहती हैं.” प्रोफैसर प्रेरणा, “निमित, सुबह प्रभु समपर्ण और योग हमें दिन भर के लिये मजबूत सोच और नई ताकत दिन भर की बिषमताओ से उभरने की क्षमता प्रदान करता है. सारा दिन हम उस मिली शक्ति को खुद में महसूस कर विश्वासवान हो निश्चिंत होये रहते हैं.” जब हम किसी शुभ काम में जाते हैं तो पहले अपने बड़ों का आशीर्वाद या प्रभु के आगे माथा टेकना भी इस भरोसे सुख को दिखाता है.” निमित,“जी मैम्, मुझे याद है एक घटना जब मेरा कालिज में दाखले के लिये साक्षात्कार था, तो मेरी ममी ने मुझे हाथ पकड़ ऐसा विश्वास दिया `तुम पक्का कामयाब होगे’ और सच में मैं पूर्ण विश्वास में रहा और मेरा दाखला हो गया. तब से मुझे लगा कोई अंदर खाली को भरने वाली ताकत बनी रहती है जो सामर्थ्य और विवेक को जागृत कर मुश्किल में हौसला बनाये रखती है. मैम्, मैं सचमुच स्वस्थ तन और मन के स्वास्थ्य की तरफ ध्यान दूँगा.” प्रोफैसर प्रेरणा हँसती हुई बोली, “तुने तो मेरी भी आंखे खोल दीं. अब तो मुझे भी और ध्यान देना होगा.” अब प्रेरणा हाथों में पकड़ी चित्र वाली रेइकी उपचार की पुस्तक को देखने में मशगूल दिखती.
— रेखा मोहन