क्या 99% ‘पद्म अवार्ड’ पैरवी पर ही प्राप्त होते हैं, स्वनामांकित मेधा-सूची से नहीं ?
भारत की आबादी अब 130 करोड़ हो गयी है, किन्तु भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या (25 जनवरी) को घोषित किये जानेवाले ‘पद्म सम्मान’ (Padma Award) की संख्या 130 भी नहीं है, क्योंकि इसे पानेवाले कई तो विदेशी या विदेशी मूल के भारतीय या भारतीय मूल के विदेशी मेहमान भी होते ह, इसे छोड़कर मूलरूपेण भारतीय 130 भी नहीं होते हैं । इन 130 करोड़ आबादी वाले देश में प्रत्येक साल किसी भी केंद्र सरकार की नज़र में ‘130’ व्यक्ति भी मेधावी अथवा प्रतिभाशाली नहीं हैं । ऐसे में सरकार की नज़र में अपने ही आवाम के प्रति ये उपेक्षा या उदासीनता किसी भी दृष्टि में अच्छा नहीं है ।
कवयित्री विश्वफूल जी ने माननीय प्रधानमंत्री को संबोधित कर सटीक उद्धृत की है, “माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के श्रीमुख से अब 130 करोड़ भारतीय लिए संबोधन सुनती हूँ, किंतु प्रतिवर्ष 130 भारतीयों को भी ‘पद्म अवार्ड’ प्राप्त नहीं होना यानी आपकी नजर में प्रतिभाशाली भारतीय इतनी भी नहीं ! क्यों ? क्या यह आपके Positive India, Better India और Talented Indian के विमर्श को धराशायी करता व धज्जियाँ उड़ाता दिखता तो नहीं ? एतदर्थ, ‘पद्म सम्मान चयन समिति’ द्वारा प्रतिभाशाली भारतीयों की पहचान कर इन 5 वर्षों (2014-2019) में भी सम्मानित नहीं किया जा पाना कसक व टीस लिए है । भारत की आबादी अब तो 130 करोड़ से ऊपर है, जब आपने प्रधानमंत्री का कार्यभार सँभाले थे, तब देश की आबादी 125 करोड़ रहे होंगे ! किन्तु मेरा प्रश्न अब भी यथावत है, केंद्र में कोई भी सरकार रही हो, वो प्रतिभाशाली भारतीयों के पक्ष में कभी नहीं रही है ! माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी भी ‘मन की बात’ में ‘पॉजिटिव इंडिया’ और ‘बेटर इंडिया’ की बात करते हैं, किन्तु प्रथम ‘पद्म सम्मान’ से लेकर क्रमशः जब केंद्र में कांग्रेस, जनता पार्टी, संयुक्त मोर्चा, संप्रग, राजग व भाजपा की सरकार रही अथवा है, अब भी प्रतिवर्ष दिए जानेवाले ‘पद्म श्री’ सहित पद्म अवार्डों की संख्या वही है । इतनी वृहद आबादी (130 करोड़) और प्रत्येक वर्ष देश में 130 भी ‘पद्म श्री’ नहीं आते ! यह प्रतिभाशाली भारतीयों का अभाव कहेंगे या हतोत्साहन ! या तो पद्म अवार्ड की संख्या 1,000 से अधिक हो या प्रतिभाशाली भारतीयों का मूल्यांकन व चयन सिर्फ सीमित व्यक्तियों / पदधारक IAS द्वारा न हो ! मेरी बात यथार्थपरक है या नहीं, आप जाँच कर सकते हैं !”
निर्गुण की अपेक्षा ‘भौतिक’ देह से नहीं की जा सकती है और सगुण-उपासना के लिए देह्यष्टि तो चाहिए ही । सगुण जहाँ जैविक शरीर की ओर इंगित करता है, जो कि हाड़-माँस के देह के विहित है और हाड़-माँस के देह में तनिक ही सही, अवश्य ही ‘निजी स्वार्थ’ रहता है । निःस्वार्थ सेवक के अंदर भी प्रकाश (Highlight) में आने की उत्कठ कामना होती है, जो कि कोई पुरस्कार या सम्मान उन्हें एक मंच या प्लेटफ़ॉर्म या पहचान देता है । ‘पद्म सम्मान’ भी उनके काम की मुहर और ‘catalyst’ है । संत मदर टेरेसा को कुष्ठ रोगियों के महान सेविका के तौर पर जानी जाती है, ऐसे ही बाबा आम्टे रहे । उनके कार्य धरती पर के महान कार्यों में एक है, क्योंकि कोई सुख-चैन की ज़िन्दगी छोड़ वैसी ज़िन्दगी चुनने को हिचकिचाते हैं, परंतु सभी कुछ त्यागकर ही मिलता भी है तो अंश- मात्र ! कोई इन सब चीजों को ‘सोच’ कार्य करते भी नहीं हैं, तथापि निःस्वार्थ व्यक्ति भी न चाहकर भी अपना मूल्यांकन औरों के मुख से सुनने की चाह रखता है । यह हाड़-माँस के देहेच्छा की बानगी-भर है । तभी तो अन्य देश से आये व अन्य देशों के संत टेरेसा, नेल्सन मंडेला व खान अब्दुल गफ़्फ़ार खान भी ‘भारत रत्न’ से सम्मानित हो जाते हैं, यह उनके कृतित्व और व्यक्तित्व का महान पक्ष है, किन्तु हम अपने प्रतिभासम्पन्न लोगों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते !
‘पद्म सम्मान’ के नामांकनार्थ पैरवियों के लिए जहाँ पापड़ बेलने पड़ते रहे ! माननीय सांसदों, विधायकों, गणमान्यों इत्यादि से अनुशंसा कराना टेढ़ी खीर साबित होती रही है । समाजसेवा के नाम पर करोड़पति उद्योगपतियों, अभिनेताओं, अभिनेत्रियों, खिलाड़ियों इत्यादि इन सम्मानार्थ-सूची में शामिल हो जाते रहे हैं, हालांकि कई वर्षों से स्व-नामांकन की भी प्रथा रही है, किन्तु इस पद्धति को सर्वप्रथम मैंने RTI के माध्यम से प्रकाश में लाया । परंतु इस पद्धति से किसी को पद्म सम्मान मिला है या नहीं, RTI माध्यम से भी पता नहीं चल पाया है । 2015 के लिए प्राप्त होनेवाले इस सम्मान प्राप्ति के तुरंत पहले यानी जनवरी माह के शुरूआती सप्ताह में श्री सायना नेहवाल, श्री सुशील कुमार आदि के कीच-कीच सुनाई पड़े, तो दिसंबर-2014 में श्री श्री रविशंकर, स्वामी रामदेव भी ‘पद्म विभूषण’ के प्रसंगश: भारत सरकार की नज़र में आये, किन्तु स्वामी रामदेव को छोड़ यह सम्मान के लिए उन तीनों के नाम की घोषणा 25 जनवरी 2016 को हुई ।
आश्चर्य तो होता ही है, अभिनेता राजेश खन्ना को मरणोपरांत पद्म सम्मान मिला, मरहूम ओम पुरी को 1990 में ही ‘पद्म श्री’ मिला था, उसके बाद ‘पद्म’ संबंधी कुछ मिला नहीं । प्रथम व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेता के. डी. जाधव को मिला ही नहीं । दो राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता अजय देवगन को ‘पद्म श्री’ उनकी पत्नी काजोल को मिलने के बाद ही प्राप्त होती है । अभी पिछले वर्ष (2016) ही अभिनेत्री रेखा को ‘पद्म श्री’ प्राप्त हुई है । सानिया मिर्ज़ा को पद्म श्री उनकी किशोरी अवस्था में ही प्राप्त हो चुकी है, तो उसे पद्म भूषण भी प्राप्त हो चुकी है, यह तो तब जब हम श्रीमती सोनिया गांधी को विदेशी मानते रहे और सानिया मिर्ज़ा विदेश की बहू हो गयी । किन्तु नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी को अबतक प्राप्त नहीं हुआ । उसे तो ‘भारत रत्न’ मिलना चाहिए । ऐसे कई असमानता है, पंडित जवाहरलाल नेहरू और उनकी सुपुत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने तो अपने कार्यकाल में ही ‘भारत रत्न’ ले लिए । ‘हंस’ के संपादक और प्रख्यात साहित्यकार स्व. राजेन्द्र यादव ने एक बार ‘हंस’ के संपादकीय में लिखा था कि मन्नू भंडारी को एकबार ‘पद्म श्री’ प्रदानार्थ सहमति लेने कुछ सरकारी लोग घर पर आये थे, किन्तु सरकार से सिद्धांत नहीं मिलने के कारण मन्नू जी नहीं ली, ऐसी उदाहरण कभी रोमिला थापर पेश की थी । यह अलग बात है कि इंदिरा गोस्वामी को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के बाद वे ‘पद्म श्री’ को छोटा समझ ठुकरा दी थी । ऐसा नहीं लगता कि श्रीमान् वाजपेयी साहब को कई दशक पहले ही ‘भारत रत्न’ मिल जाना चाहिए था । शशि कपूर को दादा साहब फाल्के पुरस्कार ऐसी अवस्था में मिला, जब वे चलने, फिरने और समझने तक में सक्षम नहीं हैं । पद्म सम्मान को लेकर विवाद इतने क्यों है ? कभी एक उद्योगपति ने यहां तक कह दिया था कि उन्हें ‘पद्म श्री’ एक करोड़ रुपये खर्च करने पर मिला है । क्या ऐसा सच हो सकता है ?
मूलतः, ‘भारत रत्न’ हो या ‘पद्म सम्मान’ भारत के महामहिम राष्ट्रपति के नाम से जारी होता है, किन्तु माननीय गृह मंत्रालय को एतदर्थ आवेदन प्राप्त कराया जाता है, किन्तु ‘पद्म सम्मान चयन समिति’ में श्रीमान् गृह सचिव सहित महामहिम राष्ट्रपति सचिवालय के श्रीमान् प्रधान सचिव, श्रीमान् कैबिनेट सचिव, माननीय प्रधानमंत्री कार्यालय के श्रीमान् प्रधान सचिव सहित 3 या 4 की संख्या में अन्य गणमान्य व्यक्ति यथा- संस्कृतिकर्मी, रंगकर्मी, शिक्षाविद्, उद्योगपति इत्यादि को भी शामिल किया जाता है । हालांकि 2015 के ‘पद्म सम्मान’ से माननीय प्रधानमन्त्री कार्यालय के श्रीमान् प्रधान सचिव महोदय इस चयन-समिति से मुक्त नज़र आये, परंतु अन्य 3 श्रीमान् प्रधान सचिव रहे ही ! चयन-समिति के अन्य गणमान्य व्यक्ति रूपी सदस्यों में भी पलड़ा सरकार के पक्ष का भारी रहा है, तथापि क्या मात्र 7 या 8 व्यक्ति-विशेष मिलकर 130 दिनों में (यदि अवकाश जोड़ा जाय, तो 100 से भी कम दिन हो जाएंगे) हज़ारों प्रतिभाशाली भारतीयों का मूल्यांकन कर सकते हैं ! इसबार से पहले एतदर्थ नामांकितों की संख्या 1,999 तक कभी नहीं हुई । इसबार तो नयी रचनात्मक सरकार की प्रतिबद्धता ने तो कई कदम आगे बढ़कर पहली मर्तबा सबके लिए नामांकन का मार्ग खोल दिया और यह 15 सितम्बर 2016 के मध्यरात्रि तक का समय देकर online आवेदन लिए जाने का मार्ग प्रशस्त किये । अंतिम तिथि तक माननीय गृह मंत्रालय को लगभग 5,172 नामांकनार्थ आवेदन प्राप्त हुए । पहले तो 1,999 तक आवेदन प्राप्त नहीं होते थे, इसबार सचमुच में अप्रत्याशित है । अब क्या 7-8 सदस्यों वाली चयन-समिति 130 दिनों में 5,172 ‘पद्म सम्मानार्थियों’ की उपलब्धियों के मूल्यांकन में पारखी नज़र डालकर बिलकुल ही खरे उतर पाएंगे ! उसे हर दृष्टि से उतरने चाहिए, तभी ‘सत्यमेव जयते’ वाक्य आदर्श ठहरेंगे ।
इसके साथ ही यह भी सतर्कता रखनी होगी कि एक ही उपलब्धिधारक दो नामांकित व्यक्ति पर निष्पक्ष भाव रखने होंगे, क्योंकि ‘पद्म श्री-2013’ प्राप्तकर्त्ता की उपलब्धि पर जब अन्य नामांकित व्यक्ति ने आपत्ति किया कि यह उपलब्धि तो उनकी है, पद्म श्री तो उन्हें मिलना चाहिए था ! तब इस सम्बन्ध में माननीय गृह मंत्रालय ने उस व्यक्ति को पत्र भेज कहा कि उनके नामांकनार्थ आवेदन तो 21.11.2012 को प्राप्त हुए हैं, जबकि इनकी अंतिम तिथि- 20.11.2012 ही थी । वे जब सम्बंधित नामांकनार्थ-पत्र को प्राप्ति कराने के बारे में श्रीमान डाक महानिदेशक, दिल्ली को पत्र भेजता है, तो वे उनका आवेदन प्राप्ति की रिसीविंग का प्रमाण, जो माननीय गृह मंत्रालय के द्वारा प्राप्ति लिए हैं, अंतिम तिथि-20.11.2012 को ही माननीय मंत्रालय में प्राप्ति बताया है । किसी के कैरियर को प्रभावित करनेवाली ऐसी लापरवाही से किसी भी माननीय मंत्रालय को निबटने होंगे ! अन्यथा, प्रतियोगी के साथ इसे निष्पक्ष न होना कहेंगे !
तारीख 31.12.2015 को ‘पद्म श्री-2015’ धारक के citations में विरोधाभास और खामियों की तरफ माननीय गृह मंत्रालय के श्रीमान् संयुक्त सचिव को email और speed post भेज ध्यान दिलाये गए थे कि 50 से अधिक citations में त्रुटियाँ हैं । ध्यातव्य है, यह citations गृह मंत्रालय ही तय करते हैं, यथा:-
1.)सुश्री सबा अंजुम, श्री सरदार सिंह किसी राज्य सरकार में ‘पुलिस उपाधीक्षक’ हैं, जो कि एतदर्थ नामांकित नहीं हो सकते थे !
2.)पद्म श्री-2015 के लिए नामांकनार्थ अंतिम तिथि-15.09.2014 है, जबकि सुश्री अरुणिमा सिन्हा के citation में दि.12.12.2014 को आत्मकथा-विमोचन का जिक्र है ।
3.) स्वर्गीय रवींद्र जैन को ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ और ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ प्राप्तकर्त्ता बताया गया है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है ।
4.)श्री प्रसून जोशी के citation में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का जिक्र है, जिनका आरम्भ ‘अभियान’ के तौर पर दि. 02.10.2014 को हुआ, जबकि पद्म श्री-2015 के नामांकन की अंतिम तिथि- 15.09.2014 थी ।
5.)श्री संजय लीला भंसाली का जन्मवर्ष-1963 है और उन्हें वर्ष-1947 में ही फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार मिल जाता है । ऐसा citation में है ।
6.)श्री संजय लीला भंसाली निर्देशित हिंदी फ़िल्म ‘बाजीराव-मस्तानी’ का रिलीज़ माह ‘दिसंबर-2015’ का उल्लेख citation में है, जो कि पद्म श्री -2015 के नामांकनार्थ अंतिम तिथि-15.09.2014 के 15 माह बाद की तिथि है ।
7.)श्रीमती उषा किरण खान को ब्रजकिशोर प्रसाद पुरस्कार-2015 मिलने का जिक्र उनके citation में है, एतदर्थ अंतिम तिथि-15.09.2014 लिए यह पुरस्कार नास्तित्व ही रहा है ।
8.)आदि-आदि ।
— अन्य वर्षों की बात तो छोड़िए, यह सिर्फ पद्म अवार्ड – 2015 लिए है, इनमें भी 50 से अधिक एतदर्थ ‘साइटेशन’ में विरोधास और खामियाँ हैं, इनके कृत्यकारक पर ध्यानबद्ध करते और इसे सुधारते हुए एवं इसबार के कई हजार एतदर्थ नामांकनार्थियों में से उपलब्धिधारक उम्मीदवार और उनके मौलिक-कृतित्व को निष्पक्ष और न्यायपूर्ण तरीके से वर्ष-2019 के पद्म अवार्ड का चयन होना चाहिए । क्या यह समझूँ कि 130 करोड़ की आबादी सिर्फ अकर्मण्य भारतीयों लिए भीड़ बढ़ाने के लिए ही है । वर्ष 2017 में मात्र 85 भारतीय ही योग्य है ! इसबार यह अवार्ड 4 विदेशी ले गए ! तो इतनी बड़ी आबादी में मात्र 2 ओलम्पिक मैडल लाते हैं, तो परेशान क्यों ? जब हमारी भारत सरकार ही हमारा मूल्यांकन नहीं कर पाते हैं ! वहीं 12 करोड़ बिहारी में मात्र 2 पद्म अवार्डी ! क्या इसे ही निष्पक्ष चयन कहेंगे !