भजन/भावगीत

कृष्ण काव्य रूपक

255oवें ब्लॉग के अवसर पर विशेष

कृष्ण भक्ति के माध्यम से राष्ट्रीय एकता पर यू.ट्यूब लिंक सहित काव्य-रूपक

कृष्ण काव्य रूपक का यू.ट्यूब लिंक

हम बंगाली हम गुजराती,
ये सब बातें हैं बेमानी,
एक देश के रहने वाले,
पहले हैं हम हिंदुस्तानी.
एक हमारी भारत माता,
हम सब उसके सेवक हैं,
अलग-अलग है भाषा फिर भी,
सभी कृष्ण के पूजक हैं.
हिंदुस्तान जिंदाबाद, हिंदुस्तान जिंदाबाद,
हिंदुस्तान जिंदाबाद, हिंदुस्तान जिंदाबाद.

1.हिंदी भाषा
कृष्ण खड़े मधुबन में, हंसें मन-मन में
राधा के घर जाना है.
1.कृष्ण के गले में माला पहना दो
माला में हीरे-मोती जड़ दो, फूलों से गला भर दो
राधा के घर जाना है.

2. सिंधी भाषा
कृष्ण नचंदो आउ, टिपंदो आउ, रही वञु राति गोकल में,
हिक रही वञु राति गोकल में,
1.गोपियूं त गोकल गाम ज्यूं
रासि रचाईंदो आउ, टिपंदो आउ, रही वञु राति गोकल में,

3.ब्रज भाषा
कान्हा बरसाने में आ जाइयो, बुला गई राधा प्यारी
बुला गई राधा प्यारी, बुला गई राधा प्यारी
1.तातो पानी धर्यो रोहे में
गरज पड़े तो नहा जाइयो, बुला गई राधा प्यारी

4.गुजराती भाषा
प्रेमे परोड़ा तमे आवो कानूड़ालाल
1.विध-विध भांत रा भोजन बनाऊं
चाहो तो जीमण जिमाऊं कानूड़ालाल

5.काश्मीरी भाषा
हरे कृष्णा चे दुःखना शोनुए
रोशि करे इप पोशी वर शोनुए
राधे कृष्णा चे दुःखना शोनुए
रोशि करे इप पोशी वर शोनुए

6.बंगला भाषा
मोनो मोनो मोंदिरे रोहो निशिदिन
कृष्णो मुरारी श्री कृष्णो मुरारी

7.डोगरी भाषा
तू मड़ा, तू मड़ा, तू मड़ा तू
कृष्ण गोपाल प्यारे तू मड़ा तू

8.मराठी भाषा
याग्या गसार्या जनी व्रंदावनी चाव्या
टिपरी चा ताला वर कान्हा संग चाव्या
1.एक गोपी आली तीने केली सुंदर माला
गुलाल फेकी कान्हा तीचा सुंदर शीरी वाला.

9.संस्कृत भाषा
अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्
1.गोपी मधुरा लीला मधुरा, युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्

10.पंजाबी भाषा
श्यामा श्यामा सुण कृष्णा कृष्णा
त्वाडी बांसुरी मन भावे, त्वाडा नाम सुनादे, कर दे बावरी
कर दे बावरी
1.तेरे मुकुट तूं वारी-वारी जावां
मोर पंख दे नाल सजावां
श्यामा श्यामा सुण कृष्णा कृष्णा
त्वाडी बांसुरी मन भावे, त्वाडा नाम सुनादे, कर दे बावरी
कर दे बावरी

11.अवधी भाषा
मोपे जबरन रंग दियो डार यशोदा तेरे ललना ने
तेरे ललना ने, तेरे ललना ने, यशोदा तेरे ललना ने

12.असामिया भाषा
श्याम कान्हू दूरात लोइ ने जाबा
सोनर बाहीं बोनाईं थोईंसु घोरो ते बजावा

13.मैथिली भाषा
कन्हैया तोहर बंसी सभक मन मोहे
सभक मन मोहे, सभक मन मोहे
1.कन्हैया तोहर बंसी पे मोती-मूंगा सोहें
मोती के झिलमिल सभक मन मोहे

14.कन्नड़ भाषा
देवकी नंदन राधे मोहना
तोरो निन्नय मोहक दरुशना-
1.हे कृष्ण मुरारी संकट हरने
जमुनेया तीरदी नी पावन ने-

15.मलयालम भाषा
अञ्जन श्रीधरा चारुमूर्ते कृष्णा
अञ्जलि कूप्पि स्तु, तिच्चिटुन्नेन कृष्णा-
1. आनंदालंगार वासुदेव कृष्णा
आतंकम एल्लाम अकट्टिटेण कृष्णा

16.राजस्थानी भाषा
कान्हा थारी गोपियां ने बाजूबंद सोहे रे
बागां माहें रमझण बाजे शमक-शमक नाचे रे-
1.कान्हा थारे शीश ऊपर मोरपंख सोहे रे
ओढण ने पीताम्बर वालो मनड़ो मोहे रे-
2.कान्हा थारी बांसुरी में मोतीड़ा जड़ाऊं रे
बांध घूंघरा नाचण आईजे फाग गाऊं रे-
हम सब एक देश के वासी,
हिंदुस्तान हमारा है,
राष्ट्रभाषा हिंदी सबकी,
यही हमारा नारा है.
हिंदुस्तान हमारा है,
हिंदुस्तान हमारा है,
हरे कृष्णा, हरे कृष्णा,
हरे कृष्णा, हरे कृष्णा.

 

यह हमारा 2550वां ब्लॉग है.संयोगवश जय विजय पर यह हमारा 1550वां ब्लॉग भी है. कृष्ण भक्ति के माध्यम से राष्ट्रीय एकता पर यह काव्य-रूपक 1984 में सृजित किया गया था. इस काव्य रूपक में भारत की विभिन्न 16 भाषाओं के गीत समाहित हैं, जिनमें से कुछ स्वरचित हैं, शेष विभिन्न भाषाओं के लोक गीत-भजन हैं, जो बचपन से लेकर समय-समय पर सीखे गए थे. सभी भजनों की धुन वैभिन्न्य लिए हुए अत्यंत मधुर है. 1984 से यह रूपक स्कूलों में हर साल 15 अगस्त, 26 जनवरी और श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर गाया जाता रहा है. सभी छात्राएं व अध्यापिकाएं अति मग्न होकर इस रूपक को सुनती और झूमती थीं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “कृष्ण काव्य रूपक

  • लीला तिवानी

    यह विशेष कृष्ण काव्य रूपक आप लोगों तक पहुंचाने की बहुत इच्छा थी. यों तो अनेक सभा-सम्मेलनों में यह कृष्ण काव्य रूपक बहुत धूम मचा चुका है, लेकिन कोरोना के कारण लॉकडाउन चल रहा है और लॉकडाउन के कारण सोशल डिस्टैंसिंग, इसलिए सभी कीर्तन-कवि सम्मेलन भी ऑनलाइन होने लग गए हैं. अब आपके समक्ष प्रस्तुत है 255oवें ब्लॉग के रूप में यू.ट्यूब लिंक सहित यह कृष्ण काव्य रूपक. जय श्री कृष्ण.

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