नैराश्य जीवन से उबरकर डॉ. अब्दुल कलाम देश के अद्भुत रत्नों में शुमार हो गए….
जैनुल्लाब्दीन के पिता हिन्दू-मुस्लिम एकता के जबरदस्त मिसाल थे, इसके बावजूद समुद्र में मछली पकड़ने के व्यवसाय में भी शामिल थे, निर्धन मछुआरे की इस कड़ी में अब्दुल कलाम के पिता कुछ तो समृद्ध तो थे ही ! उनके द्वारा ऐसे सभी मछुआरों को नावें किराये पर दिया जाता था । जैनुल्लाब्दीन परिवार की शिक्षा-दीक्षा अत्यल्प थी, बावजूद अब्दुल कलाम की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के ही मौलवी के यहाँ से ही शुरू हुई, परंतु कलाम को गाँव के पाठशाला के एक ब्राह्मण शिक्षक बहुत भाए । माँ आशियम्मा धर्मभीरु महिला थी, कलाम माँ से प्रभावित तो थे ही । अब्दुल कलाम के समोदर व सहोदर चाचा अपने कस्बे में अखबार वितरण का कार्य किया करते थे, जो कि रेलवे स्टेशन से लानी होती थी । एक दिन चाचा बीमार पड़े और उस दिन कलाम को ही स्टेशन से अखबार लानी थी । उन दिनों वर्णित स्टेशन पर ट्रेनें ठहरती नहीं थी, अखबारों के बंडल को एजेंसी के प्रतिनिधि द्वारा चलती ट्रेन से ही प्लेटफॉर्म पर फेंक दिए जाते थे ।
उस दिन भी वही हुआ, परंतु न्यूटन के सिर पर आ गिरे सेब वाली घटना को पुनः जन्म देकर । हुआ यह, उन दिनों द्वितीय विश्वयुद्ध की स्थिति चरम पर थी, अखबार प्लेटफॉर्म पर गिरते ही बंडल फट गया और अखबार बिखड़ गया तथा अखबार में प्रकाशित हैडलाइन बालक कलाम को दिखाई पड़ गया, जिनमें विश्वयुद्ध में इस्तेमाल हो रहे धरती से हवा में मार करनेवाले बिल्कुल सामान्य ‘मिसाइल’ (प्रक्षेपास्त्र) का जिक्र था और उसी समय इस बालक के मानस-पटल पर सबसे शक्तिशाली मिसाइल अपने देश के लिए बनाने को सोच विकसित होने लगा, किन्तु यह उम्र, अपर्याप्त शिक्षा और घर की आर्थिक दशा इस सोच के लिए बाधक तत्व थे, जो कि अंकुरण से पहले ही यह बाल-विचार चल बसा, किन्तु मन के किसी एक कोने में इस हेतु दृढ़ता हिमालय की भांति जरूर अडिग रहा ! हर बच्चों की तरह अब्दुल कलाम भी पक्षियों के उड़ान भरने को देखा करते और सोचा करते– ‘काश ! वे भी पक्षी होते !’ सजीव पक्षी को लिए कृत्रिम पक्षी यानी वायुयानों के उड़ान से बेहद प्रभावित हुए और उसपर यात्रा करना ही नहीं, बल्कि विमान के संचालन के बारे में भी सोचने लगे ! कालांतर में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से वैमानिकी इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट करने के बाद सचमुच में फाइटर विमान उड़ाने को सोचने लगे । इसी उद्देश्य से वे पॉयलट बनने को इंटरव्यू दिए, परंतु इसमें सफल न हो सके और नैराश्य में पहुंच गए, फिर ऋषिकेश में एक स्वामी से मिलकर उनमें सपना देखने की प्रवृत्ति फिर जगी, क्योंकि बकौल स्वामीजी– ‘तुम फाइटर विमान का पॉयलट नहीं बन सका, किन्तु हताश न हो, क्योंकि मेरी दूरदृष्टि कह रहा है कि तुम देश के पॉयलट बनोगे !’ ….. और यहीं से अब्दुल कलाम का डॉ. अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम बनने का सफर शुरू हुआ । डॉ. विक्रम साराभाई के जूनियर रहे डॉ. अब्दुल कलाम ने गुरु साराभाई से भी आगे बढ़ ‘अग्नि’ की उड़ान भरने लगा ।
‘अग्नि’ भारत के सबसे ताकतवर व मारक क्षमतावाले ‘मिसाइल’ का नाम है, जिनके कारण भारत ने और भी साहस और ताकत पाया और इसी कारणश: उन्हें ‘मिसाइल मैन’ कहा गया । ज़िन्दगी के इस फ़लसफ़े में वे इतने रमे कि दो बार लड़कीवाले इनके घर पर बैठे रह गए, किन्तु कलाम साहब इस सामाजिक सुकार्य हेतु खुद को प्रेजेंटेशन कराने घर पहुंच नहीं पाए और उसके बाद घरवाले भी फिर कभी इस हेतु ज़िद नहीं किये ! 1992-1999 तक रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार में रक्षा व सुरक्षा सलाहकार रहे । तात्कालीन रक्षा मंत्री श्रीमान मुलायम सिंह यादव उनके कार्यों से बेहद प्रभावित हुए थे, तब इनकी भारत सरकार ने 1997 में उन्हें ‘भारत रत्न’ सम्मान से विभूषित किया था और इसी बीच वो सरकार गिरी और श्रीमान अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री पुनः बने, जिन्होंने 1998 में कलाम साहब के नेतृत्व में पोखरण में दूसरी बार परमाणु परीक्षण हेतु चुना । फिर वाजपेयी जी और कलाम साहब के बीच ट्यूनिंग चल निकले । …. और फिर तीसरी बार जब श्रीमान अटल जी प्रधानमंत्री बने, तो 2002 में एपीजे सर देश के 11वें राष्ट्रपति के रूप में शपथग्रहण किये । यह घटना दुनिया के इतिहास में संभवतः पहलीबार हुई कि किसी देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री यानी दोनों ही थे अविवाहित। वर्ष 2007 में राष्ट्रपति पद का टर्म पूरा होने के बाद उनमें राजनीति के प्रति अरुचि गृह कर गए थे, किन्तु राष्ट्र की सुरक्षा के प्रति और भी सचेत हो चले थे, इसलिए वे अपने विज़न-2020 में पुनः संलग्न हो गए और छात्रों के बीच व्याख्यान देने लगे।
अंततः छात्रों के बीच ही व्याख्यान देते-देते आई आई एम, शिलांग में अचानक गिर पड़े, संभवतः वो हार्ट अटैक था ! दिनांक 27 जुलाई 2015 में इस संत, वैज्ञानिक और भारत रत्न ने पार्थिव देह को छोड़ परलोक सिधार गए। इस दुःखद क्षण में प्रख्यात ब्लॉगर टी. मनु ने जो गद्यात्मक-कविता ‘ चाचा कलाम की यादों में पल-पल’ लिखा, जो यथाप्रस्तुत है–
“इंडिया तूने खो दिया एक महान बेटे को ।
जो ज्ञाता था क़ुरान और भगवदगीता का ।
जो ज्ञाता था अग्नि और पृथ्वी मिसाइल का ।
वो जीवन देने वाले … ‘अनकही, अनसुलझी, अबूझ पहेली’
जिन्हें नाम दिया गया है ‘ईश्वर’ ?
तूने उसे ‘पृथ्वी से उठा लिया’….??
क्योंकि उसने बनायीं थी पृथ्वी मिसाइल…।
जिसने लिया जीवन में दो छुट्टी …’एक पिता के मरने पर’
और दूजा ‘माँ के मरने पर’…।
अरे वो निर्मोही ‘ईश्वर’ तूने उसे उठा लिया ।
जिसने देश को विकसित किया मिसाइल से…
भारतीयों ने नाम दिया ‘मिसाइलमैन’…….
अरे वो अदृश्य पराशक्तियों वाले ईश्वर !
तूने उसे मिसाइल-गति से अपने पास बुला लिया ।
देशभक्ति हो जिसमें देश को दुल्हन मानने वाले
‘science पुरुष’ के लिए रोने वाला भी,
किसी अपने को नहीं छोड़ा ।।
मैं मानता हूँ की आप हो ज़िद्दी पर ….!!
पर अपनी जिद तो बदलो अपने बच्चों के लिए ।।।
माना मृत्यु चिरंतन सच है,
किन्तु हे मेरे प्रभु !
तेरे पास उनके लिए और 16 साल नहीं थे,
जो शतक पूरा कर लेते ज़िन्दगी के।
ये 16 साल के बच्चे उन्हें कितने प्रिय थे,
तुमसे क्या छिपा है ।
तुम्हारे पास क्या अच्छे लोगो की कमी हो गयी है,
जो पृथ्वी से असामयिक उठा लेते हो ।
इस बार तो हद कर दी,आपने रक्षा पुत्र को उठा लिया ।
सपनों की सच्चाई में जीने वाले को उठा लिया ।
एक अख़बार वितरक जब पायलट नहीं बन पाया,
तब भी हार नहीं मानी
और अग्नि की उड़ान कर मिसाइलमैन कहाया।
स्वदेशी उपग्रह भी छोड़े, ‘अणु बम’ के लिए बुद्ध फिर मुस्काये,
कोई ‘भारतरत्न’ राष्ट्रपति बने ,
गीता – क़ुरान भी पढ़ते साथ साथ,
परंतु विज़न 2020 तक पहुँच न पाये ।
परंतु अंतिम प्रयाण रहे बच्चों के साथ, वीणा भी बजाते।
एक बार फिर चाचा नेहरू, 27 (जुलाई) ही बच्चों से दूर चले गए ।
हिन्दू तीर्थ रामेश्वरम में एक मुस्लिम परिवार में जन्मे ।
हे अल्लाह उन्हें फिर भेजियेे यहाँ ….!!
हाँ ! चाचा कलाम, ‘वले कुम सलाम’,
शत शत श्रद्धा सुमन ।”
वास्तव में, डॉ. कलाम की पूर्ति कोई नहीं कर सकते हैं ! वे देश ही नहीं, विश्व के महान वैज्ञानिक और भारतरत्न विभूषित संत ‘राष्ट्रपति’ थे । भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद न केवल प्रखर मेधावी थे, अपितु दर्शन वैज्ञानिक व आध्यात्मिक दर्शनवेत्ता थे । राष्ट्रपति भवन के पहले संत थे, साथ ही भारतीय स्वतंत्रता काल में ही राजेन्द्र बाबू भारतीयों के लिए ‘देशरत्न’ बन चुके थे, हालांकि डॉ. प्रसाद बाद में भारत रत्न से विभूषित हुए । डॉ. कलाम से मुझे भी दो बार निकटस्थ होने का सुअवसर मिला है, पहली दफ़ा जब वे राष्ट्रपति नहीं थे, किन्तु ‘भारतरत्न’ विभूषित थे और दूसरी दफ़ा उनके महामहिम राष्ट्रपति होने पर । दोनों दफ़े पटना में । पहलीबार पी एम सी एच / पटना यूनिवर्सिटी में सुश्री मीसा भारती, स्वर्ण पदक धारिका एम बी बी एस [अब श्रीमती मीसा भारती, मा. राज्यसभा सांसद] इत्यादि छात्र-छात्राओं को दीक्षांत-पदक प्रदान करने के क्रम में कलाम साहब के साथ प्रश्नवार्त्ता लिये । दूसरीबार, पटना म्यूज़ियम के बाहर बैरिकेडिंग के समीप राष्ट्रपति के कार में राष्ट्रपति बना एपीजे सर द्वारा अपने ज़ुल्फ़ को साधारण’सा कंघी से सँवारते हुए । ऐसे भारतरत्न को उनके जन्मदिवस पर एक सामान्य भारतीय की ओर से शतशः सलाम, वलेकुम सलाम!