अब लोगों में फिजिकल डिस्टेंसिंग लिए वैराग्यपन !
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कोरोना वायरस जनित कोविड-19 वैश्विक महामारी घोषित हो चुकी है । बिहार में स्कूल-कॉलेज सहित सभी भीड़-भाड़वाले स्थानों पर आवाजाही की 31 मार्च तक रोक लग चुकी है । होली में रंगों से सराबोर होकर तथा कुर्ते फाड़ होली खेलने के अगले दिन से लोग यह सोचकर रखे थे कि बासी गुजिया, भुजिया, दहीबड़ा, पापड, पकौड़े, कचरी, बड़ी और मलपूवे खाएंगे, चैता गाएंगे । घर-घर जाकर ढोलों की थाप और खँजरी बजा-बजा कर अगले साल की होली का सेलिब्रेशन करेंगे, किंतु कोरोना वायरस जनित महामारी कोविड-19 के तीव्रगति से प्रसार से लोगों के अंदर का उत्साह और आनंद जाता रहा। हमें हाथ एयर मुँह की सफाई, तौलिये की सफाई, शरीर के अंगों की नियमित सफाई, फिर छींक, सर्दी-जुकाम आदि से दूरी लेकर ही इस महामारी से सुरक्षा पा सकते हैं । परहेज ही बचाव का सर्वोत्तम उपाय है, इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन करके यह स्पष्ट किया कि जिस महामारी के लिए जब कोई दवा नहीं बनी हो, तो लोग अनावश्यक मटरगश्ती न कर खुद को घर में रखें और अत्यावश्यक कार्य पर ही बाहर जाए। प्रधानमंत्री के इस पहल का स्वागत होनी चाहिए। 40 दिवसीय लॉकडाउन अगर सालभर के लिए रह जाय, तब क्या होगा ?
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सिर्फ जान है तो जहान ही नहीं, अब तो जान भी मेरी, जहान भी मेरी । शबे बरात, राम नवमी, महावीर जयंती सब हो गए, इसे मन की मन्दिर में मनाइये,न कि सामूहिक होकर, क्योंकि अभी सभी कोई महामारी से त्रस्त हैं । इसी कारण लॉकडाउन लगी है । वैसे छठ पर्व साल में चार बार मनाया जाता है, जिनमें 2 बार महत्वपूर्ण रूप से है और उनमें कार्तिक- छठ अतिविशिष्ट है, परंतु चैत्र- छठ की महत्ता भी है । अन्य दो ऋतुओं में भी छठ महापर्व निर्धारित है, परंतु अन्यार्थ लिए है । कहा जाता है, चैत्र मास में होनेवाले छठ पर्व को अरण्यप्रवास में जगज्जननी जानकी सीता देवी ने भी की थी । धार्मिक स्थलों में इसबार नहीं बननेवाले पूजा-पंडालों की व्ययराशि को कोरोना कोष में जमा की जानी चाहिए ! कोरोना वायरस की भयावहता को देखते हुए अभी पूरे देश में लॉकडाउन है और हर धर्म के धार्मिक स्थलों में पूजा-पाठ बंद है और इसबार चैत्र- छठी महाव्रत के श्रद्धालुओं ने घर पर ही छठ पर्व किए।
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अगर आप अध्ययनशील हैं तो महर्षि मेंहीं की ‘सत्संग योग’ पढ़िए और योग कीजिए। कोई भी ‘संत’ स्थान, धर्म और काल विशेष से परे होते हैं, बावजूद बिहार, झारखंड आदि राज्यों व नेपाल, जापान आदि देशों में लोकप्रिय संत महर्षि मेंहीं और उनके आध्यात्मिक-प्रवचन से भारत के राष्ट्रपति डॉ. शर्मा, प्रधानमन्त्री श्री वाजपेयी सहित कई राज्यो के राज्यपाल, मुख्यमंत्री , नेपाल के महाराजा सहित अनेक व्यक्ति प्रभावित हुए हैं । संत टेरेसा और बिनोवा भावे उनसे खासे प्रभावित थे । ‘सत्संग-योग’ पुस्तक उनकी अनुकरणीय कृति है । जिसतरह से भगवान बुद्ध के लिए बौद्धगया महत्वपूर्ण रहा है, उसी भाँति महर्षि मेंहीं के लिए कुप्पाघाट, भागलपुर महत्वपूर्ण स्थल है । प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु इस स्थल के दर्शन करने आते हैं । मैंने विगत सितम्बर में इस संत को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ प्रदानार्थ आधिकारिक ‘प्रार्थना-पत्र’ गृह मंत्रालय, भारत सरकार को भेजा है। इस समाचार पत्र के माध्यम से पाठकों से अपील है, वे सब इस मुहिम को मंजिल तक पहुँचाए।
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लॉकडाउन 2.0 में अप्रभावित क्षेत्रों में थोड़ी ढील दी गयी है, तथापि कोरोना महामारी से अतिक्रांत के कारण लॉकडाउन में घर में सुरक्षित और संयमित जीवन बिता रहे सामान्य लोग भी आजकल कवि, लेखक, चित्रकार इत्यादि बन गए हैं । कोरोना पर कविताएँ लिख रहे हैं, तो इसे यूट्यूब पर भी डाल रहे हैं । ऐसे ही यूट्यूब चैनल ‘कूड़ा कचरा’ में ‘तुम मिस कौना नहीं, मिसेज कोरोना हो’ नामक कविता पॉपुलर हो रही है, जो कोरोना पर हिंदी की पहली कविता है । वहीं ‘कोरोना चालीसा’ की अलग ही धूम है, यह कोरोना पर पहली चालीसा है । सोशल मीडिया पर अनर्गल पोस्ट करने से अच्छा है, चलो सृजनात्मक या रचनात्मक बना जाय!
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