कविता

मन करता मनमानी

मन मनमानी पर उतर आया है,
लगता है कि किसी बुरी आत्मा का साया है।
कोई तो तरकीब हो जिससे यह समझ सके
कि जरूरी नहीं है किसी दीन की मदद करना,
किसी मासूम,असहाय के आंसू पोछना।
किसी अबला की वेदना को समझना,
आसपास हो रहे अन्याय को देखना।
क्यों नहीं यह दूसरों की तरह हो जाता है?

चुपचाप तंत्र(सिस्टम) का हिस्सा बनकर,
भ्रष्टाचार,अनाधिकार,अत्याचार का
प्रत्यक्ष,अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार बन जाना,
प्रतिकार छोड़ हथियार डाल देना,
मौन रहकर तमाशबीन बने रहना,
यही तो करते हैं सभी।

जाने कौन सा भूत सवार है परोपकार का,
दिन रात इसे समझाती रहती हूं लेकिन
मेरी समझाइश को हर बार अनसुना कर देता है।
सचमुच ही इसके ऊपर बुरी आत्मा का साया है।।

— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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