डाककर्मी कालीप्रसाद पॉल में है अदम्य साहस
उनके जन्म के 7 माह और 5 वाँ दिन ही भारत आजाद हो गया यानी जन्म तिथि 10 जनवरी 1947 के दिन उनके पिता स्वतंत्रता संग्राम को लेकर जेल में थे. इसीकारण इनका नाम काल प्रतीक को लेकर ‘काली प्रसाद’ रखा गया, जो कि 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद होते ही इनके नाम काली माँ के प्रसाद स्वरूप काली प्रसाद हो गए. जन्मस्थान बिहार के नवाबगंज मनिहारी में, जिनके बिलकुल करीब 1757 में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ईस्ट इंडिया कंपनी के संरक्षक क्लाईव के बीच भयंकर लड़ाई हुई थी.
पारिवारिक कुम्हारगिरी से आर्थिक विपन्नता की पाट भरी नहीं जा सकती थी. फिरतो अभावों में शिक्षा ग्रहण की जाती तो है, किन्तु इनकी अवधि लंबी नहीं होती, परंतु उतना अध्ययन ही तब उन्हें पहले पुलिस, फिर टेलीफोन विभाग और अंततः डाक विभाग में नौकरी दिलाई और 49 रूपये मासिक पर ग्रामीण डाकिया के रूप में कार्यारम्भ किया. 12 गांव पैदल चिट्ठी वितरण सहित अधिकांश अनपढ़ परिवारों को उनके आग्रह पर पत्र पढ़कर सुनाते भी थे. इसप्रकार से रोज 18 से 22 किलोमीटर की दूरी पैदल चलना सहित रविवारावकाश और अन्य अवकाश में भी अवितरीत चिट्ठियों का वितरण कार्य के बाद शुरूआत में भाई-बहन, फिर कई वर्षों बाद चारों बच्चों को खुद पढ़ाना कि अगर जीवन ओलिंपिक है, तो यह इनकी मैराथन पारी रही. साइकिल खरीद नहीं पाये और पैदल चलना इनकी नियति हो गयी.
चालीस साल की बेदाग नौकरी में अगर औसत दिन और दूरी को जोड़ा जाय, तो इनके द्वारा 31 जनवरी 2007 तक लगभग 2 लाख 50 हजार किलोमीटर पैदल चला गया, जो एक रिकॉर्ड है. अंतिम वेतन भी 8,000 रुपये से ज्यादा नहीं रहा, परंतु वेतनों में से छद्मनाम सहारे देशभर में जहाँ कहीं भी संकटोत्पन्न हुई, डाक माध्यमों से अकाल, बाढ़, भूकंप, तूफ़ान, बर्फ़बारी, आगजनी इत्यादि आपदाओं हेतु विविध कोष में अबतक लाखों रुपये दान कर चुके हैं. इन्होंने अपनी चारों संतान में भी ऐसी प्रवृति डाल चुके हैं. जो 46, 38, 34, 26 वर्ष की आयु लिए भी अविवाहित हैं! कालीप्रसाद की उपलब्धियों को एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स आदि ने दर्ज़ किए हैं.