इतिहास

सिर्फ़ ‘मंडल कमीशन’ के पैरोकार नहीं थे वी. पी. मंडल

साल 2018 में पिछड़ों के आरक्षण-पैरोकार व ‘मंडल कमीशन’ नायक बी. पी. मंडल की जन्मशताब्दी रही। उनकी जन्मतिथि 27 अगस्त 1908 है। ध्यातव्य है, ‘अमृत बाज़ार पत्रिका’ ने 1908 के किसी सम्पादकीय में जिनकी काफी प्रशंसा की, तो इन्हीं दिनों दरभंगा महाराज ने जिसे ‘मिथिला का शेर’ कहा । आपको पता है, वह शख़्स 1911 में स्थापित ‘अ. भा. गोप जातीय महासभा’ (कालांतर में ‘अ. भा. यादव महासभा) के संस्थापक अध्यक्ष थे और जिनकी पहचान यादवों के सामाजिक न्याय के प्रणेता के तौर पर रहा है, वह भारतीय स्वतंत्रता के अमर सेनानी ‘रासबिहारी मंडल’ नामार्थ अभिहित थे । यह शख़्स मधेपुरा के मुरहो गांव से निकलकर सम्पूर्ण बिहार, संयुक्त प्रान्त (अब उत्तर प्रदेश) और बंगाल प्रांत (अब प.बंगाल) में छा गए।

आदरणीय रासबिहारी मंडल के तीन पुत्रों में ज्येष्ठ भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल 1924 में बिहार-उड़ीसा विधान परिषद के सदस्य बने, तो भागलपुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड (जिला परिषद) के 1948 तक अध्यक्ष रहे, तो मंझले पुत्र कमलेश्वरी प्रसाद मंडल स्वतंत्रता-आंदोलन में जयप्रकाश नारायण के सहयोगी थे और सेंट्रल जेल, हजारीबाग में जेपी के साथ थे तथा 1937 में बिहार विधान परिषद के सदस्य थे । तीसरे व कनिष्ठ पुत्र बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल का जन्म 1918 में वाराणसी में तब हुआ, जब बीमारी के कारण रास बिहारी मंडल काल-कवलित हो गए थे । बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ही कालांतर में ‘बी. पी. मंडल’ के नाम से जगतप्रसिद्ध हुए, जो 1952 और 1962 में मधेपुरा से बिहार विधान सभा के सदस्य चुने गए ! किन्तु पामा गाँव की घटना ने उन्हें 1965 में कांग्रेस छोड़ने को मजबूर कर दिया और सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए, फिर इसी पार्टी से 1967 में मधेपुरा से लोकसभा सदस्य चुने गए । इसी बीच उन्हें बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया, किन्तु वे तब सांसद थे, विधायक नहीं! …. और वे छह माह सांसद रहते बिहार सरकार में मंत्री बन चुके थे, जिनके कारण उनसे डॉ. राममनोहर लोहिया खपा थे, क्योंकि वे सांसद पद से इस्तीफा देकर विधान सभा की सदस्यता हासिल नहीं कर पाया था । पुनः, मंत्री बने रहने में कानूनी अड़चन थी !

इसी बीच बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कृष्णबल्लभ सहाय, महेश प्रसाद सिंह और रामलखन सिंह यादव 28 जनवरी 1968 को परबत्ता के विधायक सतीश प्रसाद सिंह के पास आये और उन तीनों ने उनसे कहा- चलिए एक जगह ! किन्तु यह नहीं बताया- कहां चलना है । वे तीनों उन्हें लेकर राजभवन पहुंच गये और समर्थन की चिट्ठी राज्यपाल को सौंप दी और उसी शाम साढ़े 7 बजे शपथग्रहण का समय तय हो गया। सतीश प्रसाद सिंह के साथ सिर्फ दो मंत्री शत्रुमर्दन शाही और झारखंड पार्टी के एन. ई. होरो को शपथ दिलायी गयी। कांग्रेस के तीनों प्रमुख नेता कृष्ण वल्लभ सहाय, महेश प्रसाद सिंह और रामलखन सिंह यादव को भरोसा था कि बी. पी. मंडल को एम. एल. सी. मनोनीत करने के बाद सतीश प्रसाद सिंह इस्तीफा दे देंगे । इस बीच कृष्ण वल्लभ सहाय के विश्वस्त परमानंद सहाय ने बिहार विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह पर बी.पी. मंडल के मनोनयन की सिफारिश मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह की मंत्रिमंडल ने भेजा और उसी आधार पर बी.पी. मंडल को विधान परिषद की शपथ दिलायी गयी। सतीश प्रसाद सिंह बिहार के पहले पिछड़े वर्ग (कुशवाहा) से मुख्यमंत्री थे, किन्तु इस पद पर मात्र तीन दिन रहकर 1 फरवरी 1968 को त्यागपत्र दे देते हैं, हालांकि उनसे इस्तीफे लेना इतना भी सहज नहीं रहा, फिर बड़े नाटकीय घटना-चक्र के बाद इसी दिन बिहार के मुख्यमंत्री बने- बी. पी. मंडल। पिछड़ी जाति ‘यादव’ के पहले सीएम।

वह एक माह ही मुख्यमंत्री रह पाए । फिर 1968 में लोकसभा उपचुनाव जीते । वहीं 1972 में वे मधेपुरा से विधायक बने, 1977 में फिर मधेपुरा से लोकसभा सांसद बने और जनता पार्टी के बिहार संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के नाते लालू प्रसाद को कर्पूरी ठाकुर और सत्येन्द्र नारायण सिंह के विरोध के बावजूद छपरा से लोक सभा हेतु जनता पार्टी का टिकट बी. पी. मंडल ने ही दिया, 1977 में छपरा से लालू प्रसाद की प्रथमबार जीत हुई थी ।

पहली जनवरी 1979 को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बी. पी. मंडल को ‘पिछड़ा वर्ग आयोग’ का दूसरा अध्यक्ष नियुक्त किया, अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes) के 27% आरक्षण को जिस शिद्दत से उनकी टीम ने रिपोर्ट तैयार की, वह कालांतर में मील का पत्थर साबित हुआ, जिसे लाख कोशिश के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय में भी ख़ारिज नहीं किया जा सका ! हालांकि बी. पी. मंडल का देहावसान 13 अप्रेल 1982 को हो गया, किन्तु ‘मंडल कमीशन’ की रिपोर्ट को 1989-90 में प्रधानमंत्री बी. पी. सिंह ने लागू कर बी. पी. से बी. पी. तक लिए देश के बी. पी. बढ़ा गए, किन्तु बी. पी. मंडल पिछड़ों के ‘बी.आर. अम्बेडकर’ बन गए !

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.