ऐसे संवेदनशील समय में बुजुर्ग माता-पिता की सार्थक देखभाल हो
कोरोनाजनित महामारी और लॉकडाउन अवधि में ही नहीं, वरन सम्पूर्ण समय हम अपने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा-सुश्रुषा करेंगे । ध्यातव्य है, पहली अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस रही । दूसरे पद धारकों की बात छोड़िये, कई शिक्षक मित्र अपने माँ-बाप के साथ न रह ‘शहर’ में किराए की मकान में रहते हैं, तो ऐसी शिक्षिकाएं भी हैं, जो सास-ससुर को साथ नहीं रखती हैं।
शुरू-शुरू में लोग लोग सास-ससुर की अच्छी-खासी देखभाल करते हैं, फिर जब जायदाद न प्राप्त होने की भनक लगती है तो ऐसे सास-ससुर की सेवा बंद हो जाती है। पुत्र अगर तटस्थ रहे, तो पुत्रवधू भी ना-नुकुर करेंगी भी तो आख़िरत: जाएंगी कहाँ ?
आज के पुत्र और पुत्रवधू बूढ़े माता-पिता को रोजाना सताते हैं। वे उन्हें घर पर नहीं रखते हैं, वृद्धाश्रम में रखते हैं । अगर घर में रखते हैं, तो घर के बाहरी हिस्से में। बुजुर्ग माता-पिता को समय पर खाने को नहीं मिलता है। अगर खाना मिल भी जाय, तो दवा समय पर नहीं मिलती। दवा की व्यवस्था हो भी जाय, परंतु तब उन्हें सेवा और प्रेम प्राप्त नहीं हो पाता है । इस हेतु सरकार के साथ – साथ समाज को केंद्र में आना चाहिए।
मुख्यतः, यह एक सामाजिक पहल है ।हम बूढ़े माता-पिता से अलग नहीं रहें ! हम जब बालक थे, उनके सान्निध्य में पले-बढ़े ! आज जब वे बूढ़े हैं, तो उसे हम कैसे छोड़ सकते हैं? आपको पता है या नहीं कि कल आप भी बूढ़े होंगे, इस लिहाज से भी बंद हो बुजुर्गों की प्रताड़ना !