गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

काँटों से जतन करके दामन को  बचाना है।
फूलों से  अगर तुमको  घर बार  सजाना है।
इक दीप बना खुद को गर दीप  जलाना है।
कुछ करके जतन जग का अँधियार मिटाना है।
कुछ देर  को ठहरा है  कुछ देर में जाना है।
दरवेश सिफत इंसां कुछ वक़्त  बिताना है।
आती न समझ मुझको उसकी येअदाकारी,
ख्वाबों में  मुझे आकर रातों में  सताना है।
रत्ती भी नहीं रक्खो फेवर की तवक्को कुछ,
उल्फत का सदियों से  दुश्मन ये ज़माना है।
दिलसाफ रखो अपना,अपना है पराया भी,
कुछ वक्त यहाँ सब को दुनिया में बितानाहै।

 — हमीद कानपुरी 

*हमीद कानपुरी

पूरा नाम - अब्दुल हमीद इदरीसी वरिष्ठ प्रबन्धक, सेवानिवृत पंजाब नेशनल बैंक 179, मीरपुर. कैण्ट,कानपुर - 208004 ईमेल - [email protected] मो. 9795772415