लॉकडाउन
श्रमिक दिवस 1 मई पर विशेष
लॉकडाउन के समय में आने वाले संदेशों में से एक संदेश यह भी था-
”रेडियो में एक कहानी सुनी थी, कि एक बार गांव में तेज़ तूफ़ान आ गया. बहुत-से छप्पर उड़ गए.
दो साधु एक झोंपड़ी में रहते थे. पहला साधु आया तो, आधी झोंपड़ी को टूटा देखकर मालिक से शिकायत करने लगा, कि मैं तो तेरी इतनी पूजा करता था, पर अब नहीं करूंगा. तू निर्दयी है.
दूसरा साधु आधी झोंपड़ी साबित देखकर मालिक की इबादतत करने लगा, कि हे मालिक, यह तेरी ही कृपा होगी, कि आज भी मेरे ऊपर छत है. शायद मेरी पूजा करने में ही कोई कमी रही होगी, पर अब ज़्यादा पूजा करूंगा.
एक ही बात से कोई शिकायत और किसी को इबादत करने का बहाना मिल जाता है.”
लॉकडाउन ने दोनों स्थितियों के दृश्य दिखा दिए थे. उसने मजदूर को मजबूर होते हुए भी दिखा दिया था और श्रमिक के श्रम के अभाव में देश की अर्थव्यवस्था की चूलों को हिलता हुआ भी दिखा दिया था.
एक ओर कुछ लोगों ने अतिरिक्त समय में ताश खेलकर लॉकडाउन के सामाजिक दूरी बनाए रकने के अनुशासन को भंग कर दिया था और घर में महाभारत मचा दिया था, दूसरी ओर उत्तराखंड के नैनीताल जिले में 40 परिवारों के खड़की नामक एक छोटे-से गांव में गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं थी. कई बार शिकायत के बाद भी जब सुनवाई नहीं हुई, तो लोगों ने लॉकडाउन के अतिरिक्त समय का फायदा उठाया और सड़क बना डाली.
लॉकडाउन के खाली समय का असली सदुपयोग इन श्रमिकों ने ही कर दिखाया था.
इन ब्लॉग्स को भी पढ़ें-
तृष्णा (लघुकथा)
https://vsp1nbtreaderblogs.indiatimes.com/rasleela/trishna-laghukatha/
बाल श्रमिक की पुकार (गीत)
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4/
राष्ट्र के विकास की धुरी है श्रमिक
श्रमिक शब्द श्रम से बना है | श्रम का मतलब मेहनत होता है | मेहनत दो तरीके की होती है – शारीरिक मेहनत और मानसिक मेहनत | शारीरिक या मानसिक मेहनत करके आजीविका चलाने वाले व्यक्ति को श्रमिक कहते है | अर्थशास्त्र में श्रम का अर्थ है शारीरिक श्रम | इसमें मानसिक कार्य भी शामिल हैं |