नहीं चाहती सीता बनना
बिना किसी अपराध के
दंड की अधिकारी बनी
हर सुखद क्षण से
रही वंचित
त्यागना पड़ा हर वो
संबंध, जो आवश्यक था
जीवन के लिए !!
नहीं चाहती मैं
बनना सीता
नहीं देना मुझे कोई
अग्नि परीक्षा
और,,,
नहीं छोड़ना मुझे वो
सारे अधिकार
उस समाज के लिए
जो केवल दोषारोपण
करना जानता है
और थोपता है अपने
अहम के साथ
बहुत सारे नियम कायदे!!
मुझे भी चाहिए
स्वयं की स्वतंत्रता,
निर्णय लेने का अधिकार,
बिना किसी भेदभाव के
इस पुरुष प्रधान
समाज में,,,!
— सपना परिहार