ब्रांड
सोनाली वैसे तो मध्यमवर्गीय परिवार से ही थी, पर शादी के बाद ससुराल में ब्रांड के बिना बात करना उसे अपनी तौहीन लगता था । कहीं न कहीं उसकी हीनभावना ही उसे ऐसा करने को प्रेरित करती थी । पर वह खुश थी कि वह सभी को अपना स्टैण्डर्ड दिखने में कामयाब हो पाई है ।
इसी बीच कुछ दिनों के लिए सोनाली की ननद घर रहने आई । समय कैसे कटा, पता ही न चला । जाते वक्त ननद को कपड़े पकड़ते हुए वह बोली, “दीदी यह साड़ी आपको पक्का पसंद आएगी, ब्रांडेड है और पूरे 4000 की है ।”
भाभी से मिलने का चाव, उनके द्वारा ब्रांडेड कपड़े और कपड़ों के रेट का प्रवचन सुन कर, सदा के लिए ख़त्म हो चुका था ।
अंजु गुप्ता