ग़ज़ल
खुद बखुद आसान सारे मरहले हो जायेंगे
तेरी हिम्मत से हज़ारों सिलसिले हो जायेंगे
दोस्तों मंजिल की दूरी से न घबराना कभी
रफ्ता -रफ्ता रास्ते खुद काफिले हो जायेंगे
सिर्फ धरती ही नहीं आकाश भी थर्रायेगा
अपनी आवाजों के जिस दिन जलजले हो जायेँगे
वो जो देते हैं हमेशा धमकियां तूफ़ान की
दूब की मानिंद उनके हौसले हो जायेंगे
सब निगल जायेगा लावा तोड़ कर चट्टान को
ये सुलगते जख्म जिस दिन आबले हो जायेंगे
गर कदम से यूँ मिला कर हम कदम चलते रहे
मेरा दावा है की तय सब फ़ासले हो जायेंगे
— मनोज श्रीवास्तव लखनऊ