बुद्ध जयंती विशेष
सृष्टि रचैता भगवान ब्रह्मा के पुत्र मरीचि हुए जिनके कुल में वैवस्वत का जन्म हुआ जिनके नाम से इस वंश को सूर्यवंश कहा जाने लगा। आगे चलकर सूर्यवंश में महाप्रतापी राजा अम्बरीष हुए जो पूरी पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट हुए। इनके बाद इच्छवाकु हुए जिनके पौरुष व पराक्रम के कारण यह वंश इच्छवाकु कहलाया जाने लगा। आगे इसी वंश में रघु हुए, जिनकी कीर्ति पताका चारों दिशाओं में फैली। इनके नाम से रघुवंश कहलाया। इसी वंश में मर्यादापुरुषोत्तम व नारायण अवतार प्रभु श्री राम का जन्म हुआ। जिनके गुण, संस्कार, धर्म, मर्यादा, अनुशासन, त्याग, समर्पण को देखकर सर्वजन ने उन्हें ईश्वर रूप में स्वीकार किया। इसी इच्छवाकु (सूर्यवंश) में आगे जाकर कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन शाक्य के घर सिद्धार्थ का जन्म हुआ। इसी कुल के चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त और सम्राट अशोक ने दिग्दिगांतर में अपनी शौर्य पताका लहराई। किन्तु हम राजा शुद्धोधन के पुत्र राजा सिद्धार्थ के चरित्र को जानने का प्रयास करेंगे। जिन्हें कलियुग काल में बुद्ध के नाम से जाना गया। सिद्धार्थ ने गौतम गोत्र में जन्म लिया इसलिए वे गौतम भी कहलाये। शाक्य गणराज्य से देवदह जाते हुए रास्ते में ही महारानी को प्रसव पीड़ा हुई, यह स्थान लुम्बिनी था जहां सिद्धार्थ का जन्म हुआ। जन्म समय के काल, ग्रह, नक्षत्रों को देखकर मुनि ऋषियों ने सिद्धार्थ की भविष्यवाणी में कहा था कि यह बालक या तो महान राजा बनेगा या महान मार्गदर्शक।
सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद् को तो पढ़ा हीं , राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हाँकने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता। यद्यपि कई बार प्रतियोगिताओं में वे अपने भाइयों व मित्रों से हार जाया करते थे, क्योंकि उन्हें किसी को हारने का दुख देना स्वीकार नही था। सोलह वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ का कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। पिता द्वारा ऋतुओं के अनुरूप बनाए गए वैभवशाली और समस्त भोगों से युक्त महल, सुख के साधन, संपन्नता में वे यशोधरा के साथ रहने लगे। जहाँ उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ। एक दिन जब सिद्धार्थ रथ पर शहर भ्रमण के लिये निकले थे तो उन्होंने मार्ग में जो कुछ भी देखा उसने उनके जीवन की दिशा ही बदल डाली। एक बार एक दुर्बल वृद्ध व्यक्ति को, एक बार एक रोगी को और एक बार एक शव को देख कर वे संसार से और भी अधिक विरक्त तथा उदासीन हो गये। पर एक अन्य अवसर पर उन्होंने एक प्रसन्नचित्त संन्यासी को देखा। उसके चेहरे पर शांति और तेज़ की अपूर्व चमक विराजमान थी। सिद्धार्थ उस दृश्य को देख-कर अत्यधिक प्रभावित हुए। सन्यासी की प्रसन्नता का उनके मन पर इतना प्रभाव पड़ा। विवाह व पुत्र जन्म के बाद भी उन्हें यह अनुभूति होती रही, कि उनका जन्म राजकीय सुख भोगने के लिए नही हुआ। उनका मन वैराग्य में चला और सम्यक सुख-शांति के लिए उन्होंने आपने परिवार का त्याग कर दिया। सत्य व धर्म की खोज में वन की ओर प्रस्थान किया। धर्म अहिंसा व त्याग के गुणों व तत्व ज्ञान की प्राप्ति के लिए सिद्धार्थ ने वन में निरन्तर साधना की। संकल्प ने किसी भी महापुरुष के जीवन को सुगम नही बनाया। सत्य के ज्ञान को प्राप्त करने के संकल्प में सिद्धार्थ को भी कई कठिनाइयों से गुजरना पड़ा। व्यक्ति की प्रथम लड़ाई तो स्वयं से होती है, सिद्धार्थ को भी अपने मन के विकारों से लड़ना था, बोद्धि वृक्ष के नीचे तप पर बैठने का बाद भी सिद्धार्थ को कई विपत्तियों व मानसिक संघर्षों से गुजरना पड़ा। किन्तु जब संकल्प सशक्त हो तो मार्ग चाहे जितना दुर्गम हो सफलता अवश्य मिलती है। कई वर्षों के तप के कारण सिद्धार्थ का शरीर कमजोर हो गया, एक बार तो वे मूर्छित हो गए, उन्हें विचार आया कि शरीर की सबलता व स्वास्थ्य से ही सत्य को जानने की यात्रा जरू रह सकती है, दुर्बल शरीर न साधना कर सकता है न सत्य की खोज। फिर भिक्षा मांगकर वे भोजन करने लगे। छह वर्ष की तपस्या के बाद सिद्धार्थ ने सच्चा ज्ञान प्राप्त कर लिया। तब वह ‘बुद्ध’ कहलाए। बुद्ध का अर्थ है जिसे बोध अर्थात् ज्ञान हो गया हो। उनकी सारी इच्छाएं समाप्त हो गईं। सिद्धार्थ भी जब साधना निंद्रा से जागे तो बुद्ध बनकर वापस लौटे। समाज में पूर्व से स्थापित कुप्रथाओं व रीति रिवाजों, आडंबरों के कारण आरंभ में समाज ने इनका विरोध किया, कर्मकांडी ब्राह्मणों ने इन्हें बहुत परेशान किया। क्योंकि समाज में फैले अंधविश्वास व आडंबरों से धर्म का वास्तविक स्वरूप ही समाज भूल गया था। बुद्ध ने कई लोगों का कल्याण किया इनमें डाकू अंगुलिमाल व आम्रपाली प्रमुख थे।
वे छठवीं से पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जीवित थे। उनके गुज़रने के बाद अगली पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गया और अगले दो हज़ार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फैल गया। आज बौद्ध धर्म में तीन मुख्य सम्प्रदाय हैं- ‘थेरवाद’, ‘महायान’ और ‘वज्रयान’। बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है। आज उनके जन्मदिवस पर हम यह संकल्प लें कि मानवता अनुरूप जो धर्म है उसी का पालन करेंगे, संसार के आडंबरों, अंधविश्वास व कुप्रथाओं को छोड़कर सत्य के मार्ग पर चलेंगे और दूसरों को प्रेरित करेंगे। भारत में आज भी बुद्ध की आवश्यकता है, आज पुनः समाज का एक वर्ग बुद्ध के संदेशों को भूलकर सनातन धर्म के विरुद्ध कार्य करने लगे है, जो कि बुद्ध का मार्ग नही है, इसे समाज में आई विकृति ही कहेंगे। आशा है बुद्ध अवश्य वापस आएंगे और समाज को पुनः सत्य की दिशा देंगे, जिससे समाज विरक्त होता जा रहा है ।
— मंगलेश सोनी