समय कह रहा
समय कह रहा
वैश्विक महामारी के इस संकट काल मे सबसे बड़ी चुनौती जीवन की है |
“जीवन है तो जहान है”
इस संकट काल मे आशा और विश्वास के रथ पर उत्साह को सारथी बना संयम की लगाम थाम कर आगे बढ़ना होगा |
प्राचीन जीवन शैली को अपनाते हुए जीने की आदत डालनी होगी | महत्वाकांक्षाओं को त्याग कर जो जीवन के लिए आवश्यक है जैसे – अर्थ ,खाद्य पदार्थ,अन्य आवश्यक वस्तुएं बस उसी का उपयोग उचित तरीके से करना होगा | स्वस्थ और प्रसन्न रहने के लिए योग को
जीवन का अभिन्न अंग बना होगा, जिससे हममें नवीन ऊर्जा का संचार होता रहे |
परिवार की आधारभूता हर ग्रहणी को चाहिए कि वो सकारत्मक सोंच के साथ मितव्ययिता को अपनाएं और बच्चों को भी इसका महत्व बताए | उचित तरीके से दैनिक आवश्यकताओं ,सेवाओं जैसे – पैसा,खाद्य सामग्री,अन्य संसाधनो जैसे-बिजली, पानी,की बर्बादी से परहेज करें | स्वच्छता को अपनाएं ,साधनों संसाधनों का उचित तरीके से उपयोग करें |
इस भीषण महामारी में प्राकृतिक वातावरण, सामाजिक वातावरण एवं आर्थिक परिस्थिति में आया बदलाव हमसे कह रहा है |बीते समय से सीख लेकर वर्तमान को संवार लो |
यदि समर्थ हो तो असहायों की सहायता के लिए तत्पर रहो |
इस कहावत को अमल में लाओ –
“साईं इतना दीजिये, जामे कुटुम्ब समाय |
मैं भी भूँखा न रहूँ ,साधु न भूँखा जाय||”
इसे अपनाकर हम मानसिक सामाजि आर्थिक स्थिति को संभाल सकेंगे और पुनः प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होंगे |
घर पर रहकर ही इस अद्रश्य शत्रु को हम मार सकेगे|
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’
लखनऊ(यू पी)