आंसू
कितना रोकूं मैं इन आंसुओ को
जब भी याद तेरी आती है
सब कोशिशें बेकार हो जाती है
बेकाबू हो जाती है यह आंखे
सावन भादों की तरह
बरस जाती है बेताब होकर
मैं जानता हूं अब तू नहीं आएगा
तू चला गया है हम से रूठ कर
कितना समझाऊं इन आंखों को
कब तक तू रोएगी जाने वाले के लिए
जो चला गया वो अब नहीं आएगा
तू उसे आंसू बहाकर न कर याद
ये उसकी तौहीन है
याद जब उसकी आए
आंखो में न होय कोई गम का कतरा
मुस्कुराते हुए चेहरे से
गले उससे लग कर तू मुलाकात
ब्रजेश