कविता

शराब की दुकानों पर गरीबों की लंबी कतार

खाने के पैसे नहीं,
तो पीने के पैसे कहां से लाते हो,
देशवासियों और,
 सरकार को बेवकूफ क्यूं बनाते हो?
उस गरीब की आंखें भर आईं,
बताते-बताते उसे आ गई रुलाई।
राशन के लिए रोज लाइन लगाते हैं,
भोजन के पैकेट से, भूख हम मिटाते हैं।
देश की अर्थव्यवस्था डगमगा रही है,
सुना है, रसातल की तरफ जा रही है।
नागरिक की जिम्मेदारी निभा रहे हैं,
सरकार की मदद में हाथ बंटा रहे हैं ।
मैं अपने भविष्य की डोर ‘खैंच’ दिया हूं,
सारा ही सरकारी राशन बेंच दिया हूं ।
मेरी देशभक्ति व कर्त्तव्यनिष्ठा के भाव बहुत बड़े हैं,
‘रेवेन्यू’ बढ़ाने के लिए, सुरा की लाइन में खड़े हैं।
— सुरेश मिश्र

सुरेश मिश्र

हास्य कवि मो. 09869141831, 09619872154