बहुत दूर जाना है के अभी रूकना नहीं है।
तूफां तो बहुत आयेंगे, राही झुकना नहीं है।
खुशियों के पल बाँटेंगे हम तो हर एक से,
दर्द का फ़साना कभी किसी से कहना नहीं है।
बढते रहो मुसलसल, तरक्की की राह में,
मैं रहूँ या न रहूँ, ये कारवाँ थमना नहीं है।
हर लम्हें को जी लो, हर पल खूबसूरत है,
अच्छा गुजरा के बुरा, राही सोचना नहीं है।
हम ने उखाड़ फेंके, नफ़रतों के केक्टस,
कुछ भी हो, रंजिशों के दरख्त उगना नहीं है।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”