मातृत्व
मातृत्व
“देखो मालती, मैं तुम्हारी गरीबों की मदद करने की प्रवृति का विरोधी नहीं हूँ। उन्हें खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने की चीजें देने, आर्थिक रूप से मदद करने तक तो ठीक है, पर ये कामवाली बाई के बच्चे को अपना दूध पिलाना… छी… छी… तुम ऐसा कैसे कर सकती है?”
“क्यों… इसमें बुरा क्या है? कामवाली बाई की तबीयत ठीक नहीं है। उसे आज बिलकुल दूध नहीं आ रहा है। उसकी चार महीने की बच्ची भूख से बालक रही थी, मैंने अपना दूध पिला दिया, तो कौन-सा पहाड़ टूट पड़ा। देखो, बच्ची कैसे चैन से सो गई।”
“पर… ”
“क्या पर, यदि हमारी बेटी के साथ भी ऐसा होता, तो क्या आप कामवाली को दूध पिलाने से मना कर देते। कुछ ही महीने पहले आपने मुझे फेसबुक पर आया एक फोटो दिखाया था, जिसमें नन्हे-से बंदर को एक कुतिया अपना दूध पिला रही थी, तब तो आप माँ की ममता और मातृत्व पर बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे और आज छी… छी… कर रहे हो। मत भूलो कि मैं आपकी पत्नी होने के साथ-साथ एक माँ भी हूँ।
वह अपनी पत्नी से नजर मिला कर बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।
– डा. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़