मेरे नयन में मधुर गीत है
नयन में तुम्हारे प्रिये,चाॅदनी,
मेरे मन में मधुर गीत है।
आज जाने कहां से सपन उड़ रहे,
आज जाने कहां से हृदय जुड़ रहे,
आज जाने कहां की लगन है प्रिये!
हम अंजानी दिशा में अभी मुड़ रहें,
पंथ मेरा सुकोमल नहीं है मगर,
भूलती है नहीं आज तेरी डगर,
मैं कदम को बढ़ाते हुए चल रहा हूं,
और रूकता नहीं आज़ मेरा सफ़र।
बयन में तुम्हारे प्रिये, रागनी,
और मेरे नयन में मधुर प्रीत है।
भाग्य मेरा सुहागिन नहीं है सुघर,
आज जाने कहां से मिली है डगर,
आज देखूं जरा भाग्य को तोलकर,
प्राण, जाने कहां से उठी है लहर!
हृदय में हमारे कहां की पिपासा,
लग्न है लगाती, बढ़ाती है आशा,
पुनः दीप जलता मदिर भाव का,
पर , प्रिये!प्यार की है मधुर मूक भाषा।
दशन में तुम्हारे,प्रिये! दामिनी,
और मेरे नयन में मधुर गीत है।
दिये में छलकती किरण की नादानी,
थिरकती है तेरी मधुर -सी जवानी,
यही पर लग्न है, यही पर निशानी,
न होगी हमारी तुम्हारी कहानी,
हमीं दूर होंगे, तुम्हीं दूर होंगी,
पुनः बात तेरी बहुत दूर होगी,
हमारे लिए आंशुओं का ये पानी,
अंधेरा बनेगा नहीं ज्योति होगी।
अलक में तुम्हारे, प्रिये, यामिनी,
और मेरे हृदय में मधुर गीत है।।
— कालिका प्रसाद सेमवाल