लघुकथा- सभा
सारे बच्चे आठ से तेरह वर्ष के थे। सभी उत्साह से काम कर रहे थे , फिर वे काम क्यों न करते उन्हें काम के बाद सौ रुपये और नाश्ता मिलने वाला था, कोई कुर्सी जमा रहा था, कोई झंडी लगा रहा था। दो बच्चे बैनर लगा रहे थे। बैनर में आज की सभा का विषय लिखा था जिसमे भाषण देने के लिए विद्वान् बुलाए गए थे, तथा सुधि श्रोतागण भी आने वाले थे। तभी एक संयोजक दहाड़ा -अबे ठीक से बैनर लगा। बैनर जब ठीक हो गया तो उसमे विषय साफ़ नजर आने लगा –”बाल श्रमिक” एक सामाजिक अपराध।
— महेंद्र कुमार वर्मा