कविता

अकेलापन

अकेलापन
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जब तक रूबरू न हो खुद से
एहसास नहीं होता
समुंदर में बिना डूबे मोती नहीं मिलता
अभी तक भीड़ सुहाती थी
रह जाऊंगा अकेला डरा हुआ था इस बात से
इसलिए शामिल था भीड़ में
बिना सोचे यह समझे
यह भीड़ है छितर जाएगी एक दिन
फिर रह जाऊंगा अकेला
न आया समझ में
लगा बहका रहे हैं लोग
जब रहना पड़ा इस एकांत में
कुछ दिनों अकुलाहट हुई
एक माह गुजर गया
कुछ कुछ यह भाने लगा
एकांत का सुखद अनुभव होने लगा
जो भागता था मन भीड़ के लिए
अब कुछ स्थिर हुआ
सामंजस्य बनने लगा एकांत से
एहसास बेहतर होने लगा
भीड़ से एकांत में रहना है अच्छा
जब दौर चल रहा हो बनावट का
बहुत सकून देता है यह अकेलापन

ब्रजेश

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020