कविता

अगर “जमात” नहीं होती

इस युद्ध में भारत की कभी “मात” नहीं होती,
पंद्रह को खुलता देश अगर “जमात” नहीं होती!
वो जिहादी निकले कोरोना का संक्रमण फैलाने
महामारी की मौतों को अल्लाह का पैगाम बताने।

ये नहीं सुधरेंगे उनका ईमान यही जिहाद रचेगी
अब भी नहीं जागे हम तो पीढियां ही नहीं बचेंगी।
वो जिहादी निकले कोरोना का संक्रमण फैलाने
इस युद्ध की स्थिति में मानो मानवता को हराने।

अल्पसंख्यक हैं ये जहां पर, शांति की भीख मांगेंगे
लेकिन संख्या बल मिलने पर शरिया सबपर दागेंगे।
वो जिहादी निकले कोरोना का संक्रमण फैलाने
विषाणु का हथियार अपना कर जनसंहार करवाने।

हम नहीं सुधरेंगे जब तक शर्मनिरपेक्षता बनी रहेगी
कहता है समय कि अब धर्मनिरपेक्षता भी नही रहेगी।
वो जिहादी निकले कोरोना का संक्रमण फैलाने
उनको चिन्हित करना बहुत जरूरी है महामारी को हराने।

— अनुज मेहता

अनुज मेहता

विकलांग बल कार्यकर्त्ता गुरुग्राम