राजनीति

देश में उभर रही चुनौतियों के लिए युवा लें जिम्मेवारी

कोरोनावायरस से उत्पन्न वैश्विक संकट और वैश्विक आर्थिक मंदी के वर्तमान दौर में जब चुनौतियों के बारे में हम बात करते हैं तो देश और दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती वैचारिक स्तर पर उभर रही है।आज दुनिया वैचारिक क्रांति के संक्रमण काल से गुजर रही है। यह जो वैचारिक बदलाव है उसे समान व्यक्ति भांप नहीं सकता,सामान्य आंखें उसे देख नहीं सकती,सामान्य मन इन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं रहता। यह दौर वैचारिक युद्ध का है जहां वैचारिक क्रांति व युद्ध होता है वहां दुश्मन सामने दिखाई नहीं देता और जब दुश्मन का रूप ही स्पष्ट नहीं हो वहां समस्या और विकराल रूप धारण कर लेती है। राम चरित्र मानस में वर्णित है जब मारीच स्वर्ण मृग का रूप धरकर सीता के सामने आता है तो सीता भी उसके मनमोहक रूप पर लालायित हो जाती है,और वह हठ करने लगती हैं कि उन्हें किसी भी तरह वह मृग चाहिए।ऐसी लालसा मन में पैदा करने वाला यह वर्तमान दौर चल रहा है। जिसका शिकार हम सब बन सकते हैं। वह चाहे वैश्वीकरण के रूप में हो भूमंडलीकरण के रूप में हो या निजी करण के रूप में हो या कोई अन्य। इन्हें किसी न किसी बहाने न्यायोचित ठहराने का प्रयास सरकार करती है।चाहे इसका कितना भी नुकसान युवा पीढ़ी और आने वाले पीढ़ी को उठाना पड़े। इसलिए इस पीढ़ी को ज्यादा सचेत होने की आवश्यकता है ताकि उनके हित को ताक पर रखकर अपनी छुपी हुई एजेंडे को देश पर ना थोपा जा सके।
आज देश में स्थापित मूल्यों को ताक पर रखकर कार्य किया जा रहा है।अनेकानेक प्रयास हो रहे जिसके फलस्वरूप सदियों से देश के स्थापित ताना-बाना को नुकसान हो रहा है।अपने ही देश में कुछ लोग अलहदा महसूस करने लगे।उनपर अपने पहचान सत्यापित करने का डर सताने लगा है। भारतीय समाज को विघटित करने के लिए कुछ लोग गुपचुप तरीके से समाज में जहर घोलने का कार्य कर रहे हैं,तो कुछ लोग अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए युवाओं के हाथ में कलम की जगह डंडा पकड़ाने का कार्य कर रहे हैं। इन छोटी-छोटी घटनाओं को जब हम देखें-परखेंगे तब पता चलेगा कि हमारा समाज और देश किस तरफ जा रहा है। भारतीय तहजीब को बर्बाद करने के लिए किस तरह से विघटनकारी नीतियों का अवलंबन किया जा रहा है।
देश के शिक्षण संस्थानों को राजनीति का अड्डा बना दिया गया है ।अपनी राजनीतिक दांवपेच को सिद्ध करने के लिए विद्यार्थियों का उपयोग किया जा रहा है। आज देश के सर्वोच्च शिक्षण संस्थान शिक्षा की जगह हिंसा के लिए चर्चा में हैं। यह किसी भी सभ्य देश के लिए शर्मनाक बात होगी। आज देश की स्थिति ऐसी हो गई है जहां 130 करोड़ से अधिक नागरिक हर दिन संशय की स्थिति में जीने के लिए अभिशप्त हो गए हैं।जिसका मुख्य कारण देश के सामने राजनीतिक दलों द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा आधा अधूरा सच है। मनुष्य के सामान्य आवश्यकताएं रोटी कपड़ा मकान रोजगार शिक्षा स्वास्थ्य बिजली पानी पर चर्चा ना होकर किस राज्य में किस पार्टी की सरकार बनेगी इसके लिए दिन रात अपने अपने तरीके से केंद्र से लेकर राज्य सरकारें तक सरकारी संसाधनों को झोंक कर योजना तैयार करने में व्यस्त रहती है। उनके लिए मजदूर-किसान के बच्चों के लिए रोजगार की चिंता नहीं है। फसलों की कीमतों के लिए किसान आत्महत्या कर रहे हैं इस पर चर्चा नहीं हो रही।प्रत्येक माह कोई न कोई सरकारी संस्थान निजी हाथों में सौंपा जा रहा है इस पर बात नहीं हो रही है। हर दिन सरकारी क्षेत्र में नौकरियां घट रही है।इसे बढ़ाने के लिए योजना तैयार नहीं किया जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों से पंचवर्षीय योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया जिसका परिणाम पूरे देश के सामने है।आज भारत आर्थिक समस्या के दौर से गुजर रहा है। जिन युवाओं ने इंजीनियरिंग मेडिकल प्रबंधन आदि व्यवसायिक विषयों की पढ़ाई लाखों रुपए खर्च कर की है,लाखों सपने देखे उनके हाथ में आज नौकरियां नहीं है।
नेट और पीएचडी किए हुए छात्र-छात्राएं दैनिक खर्च के लिए तरस रहे हैं ।शिक्षण संस्थानों में लाखों शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक पद खाली पड़े इसे भरने की कोई स्पष्ट योजना दिखाई नहीं पड़ता। जिस अनुपात में छात्र-छात्राओं की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है उस अनुपात में शैक्षणिक संस्थान नहीं खोले जा रहे और न हीं शैक्षणिक संस्थानों में सीटों की संख्या बढ़ाई जा रही है। इसी तरह से स्वास्थ्य सेवाओं का भी टोटा है। आम अवाम को बीमा कंपनियों के हवाले कर दिया गया है लेकिन नए स्वास्थ्य केंद्रों को सुविधा मुहैया नहीं कराया जा रहा है। जिस देश के युवा पीढ़ी शारीरिक मानसिक और आर्थिक रूप से पीड़ित होंगे उस देश का विकास किस तरह से होगा? इसके लिए सोचने की जरूरत ताकि देश का विकास नकारात्मक रूप ना ले ले। अब बहुत हो गया सोना अब सोने का समय नहीं अब तांद्रा को भंग कर उठ खड़े हो जाओ अपने हक और हुकूक के लिए देश में उपलब्ध संसाधनों का देश हित में उपयोग करते हुए देश के विकास में अपना योगदान दें। भारत के अधिकतर जनसंख्या युवा है अगर युवा ठाण लें तो देश को हर तरह की समस्याओं से मुक्त कराया जा सकता है।इसके लिए युवाओं को आगे आना होगा और देश के विकास की,भारतीय संविधान संस्कृति समाज के मजबूती के लिए जिम्मेवारी अपने कंधों पर लेना होगा। युवाओं को उन छुपे हुए शत्रुओं को पहचानना होगा जो देश के पहचान को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। देश में घटित हो रहे घटनाओं के प्रति युवाओं को संवेदनशील होना होगा।उन्हें यह नहीं सोचना होगा की उक्त घटना हमें प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं करती।अगर ऐसा सोचते रह गए तो एक दिन उन्हें भी उसी तरह के समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
— गोपेंद्र कु. सिन्हा गौतम 

गोपेंद्र कुमार सिन्हा गौतम

शिक्षक और सामाजिक चिंतक देवदत्तपुर पोस्ट एकौनी दाऊदनगर औरंगाबाद बिहार पिन 824113 मो 9507341433