सामाजिक

ग्रामीण भी कोरोना से युद्ध में पीछे नही

ग्रामीण शब्द अपने आप में ही दूरस्थ  व परंपराओं से घीरा हुआ प्रतीत होता है, यहां पर रहने वाले जनमानस भोले भाले तथा विश्वसनीय होते हैं। वे सहायता के लिए अपने प्राण तक देने को संकल्पित होते हैं। कोरोना जैसे भीषण महामारी के समय में भी भारत के ग्रामीण ने अपना विश्वास नहीं खोया। प्रत्येक सक्षम परिवार वंचितों की सहायता के लिए आगे आया है बिना प्रशासनिक सहयोग या सरकारी मदद के उन परिवारों तक राशन व उपयोगी सामग्री सक्षम परिवारों ने एकजुट होकर भिजवाई। भारत का किसान यहां भी पीछे नही रहा कई क्षेत्रों में सब्जी, फल के खेत जनसेवा के लिए निःशुल्क दान किए, यह सब्जी व फल वंचितों में वितरण के लिए दी गई। इसी प्रकार हजारों क्विंटल अनाज लोगों ने सेवा भारती व सामाजिक संगठनों को दान किया ताकि जिन्हें आवश्यकता है उन तक पहुँच सके। ग्रामीण ने जिस प्रकार लॉक डाऊन का पालन किया उसी प्रकार यदि देश के वर्ग विशेष बस्तियां व शहरी नागरिक करते तो स्थिति इतनी विकट नही होती।
कई गांवों ने तो अपनी सड़को को सील करके अपने आपको शहरों से विभक्त कर लिया, ऐसी ही एक खबर तमिलनाडु से सुनने को मिली है, कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बीच तमिलनाडु के वेल्लोर जिले के प्रशासन ने पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश से लोगों की आवाजाही रोकने के लिए हाइवे पर दो दीवारें खड़ी कर दी हैं। वेल्लोर की आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले से सीमा लगती है और वेल्लोर जिला प्रशासन ने चित्तूर के प्रशासन को सहमति में लिए बिना ये दीवारें बनाई हैं। चित्तूर जिले ने इन दीवारों पर आपत्ति जाहिर की है। झारखंड के भी कई आदिवासी गांवों ने अपने गांव पूर्ण रूप से सील कर दिए, आने जाने वालों की पहचान  होती, उसके बाद केवल ग्राम के नागरिक को ही जाने दिया जाता। बाहर के लोगों को गांव में नही आने दिया गया। इसी प्रकार मध्यप्रदेश में भी हर गांव हर नगर ने अपनी सीमाओं को सील कर दिया कहीं पुलिस के जवान तो कहीं ग्रामीण स्वयं लाठी लेकर मैदान में उतरे। वैसे भी ग्रामीण में फिजिकल डिस्टेंसिंग का ध्यान वर्षों से रखा जाता रहा है, लोग अपने घर दूर दूर बनाते है, जिससे कृषि का सामान रखने, पशु बंधने, चारा रखने, गोबर खाद एकत्रित करने आदि के लिए स्थान की कमी न रहे। खेती के काम भी पारंपरिक रूप से दूर दूर रहकर ही किए जा रहे है, जब कोरोना आया तब गेहूं व धान की फसल खेतों में लहरा रही थी, फसल कांटने से लेकर अनाज निकालने और व्यवस्थित करने में फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करके ग्रामीणों ने यह बता दिया भले ही वे कम पढ़े लिखे हो किन्तु सरकार के आदेशों का पालन वे शहर के लोगों से ज्यादा अच्छे तरीके से कर सकते है । विदित हो कि जहां मध्यप्रदेश में गेहूं, उत्तरप्रदेश में गन्ना, छत्तीसगढ़ में धान की फसल अधिक होती है, यदि यह अनाज समय पर नही निकलता तो आगामी वर्ष में दिक्कतों का सामना करना पड़ता। ग्रामीणों ने अपनी मेहनत व लगन  से कोरोना काल में भी इस लक्ष्य को पूरा किया। कोरोना से लड़ाई में केरल वाले मॉडल की काफ़ी चर्चा हो रही है, दरअसल केरल पर कोरोना का गजब कहर टूटा था, एक वक्त था जब यहां बड़ी तेज़ी से कोरोना के मामले सामने आ रहे थे, लेकिन सूबे की सरकार और जिला प्रशासन ने कोरोना को काबू करने के लिए तीन ऐसे चक्रव्यूह तैयार किए कि कोरोना यहां खुद कसमसाने लगा और अब आलम ये है कि सिर्फ तीन हफ्ते में कोरोना यहां से जाने की तैयारी कर रहा है। केरल का नेपा व जीका वायरस से लड़ने का अनुभव उसके काम आया। जमीनी स्तर तक हैल्थ वर्कर ने अभूतपूर्व भूमिका निभाकर सभी संदिग्धों के टेस्ट किए, जिससे पॉजिटिव मरीजों की पहचान समय से पहले संभव हुई। हरियाणा ने भी सभी राज्यों से लगी सीमाओं को सील किया। ग्रामीणों ने यहाँ भी हर मार्ग पर पहरा देने का काम बखूबी निभाया, क्योंकि दिल्ली महानगर जैसा हॉटस्पॉट करीब होने के कारण प्रदेश में संक्रमण फैलने का खतरा अधिक था।
 इस भीषण काल में भी गौसेवक पीछे नही हटे, कोई सूचना आने पर गौ वंश का इलाज किया गया, साथ ही आवश्यक चारा खेतों से उठाकर गौशालाओं में भिजवाने का काम भी स्वयंसेवी संस्थाओं के लोगो ने किया। जिन किसानों के पास हरा चारा था उसे भी नगर में घूमने वाले गौवंश के लिए निःशुल्क दान किया, गौसेवकों ने नगर में घूमने वाले गौवंश को भी भूखा नही रहने दिया।  भारत का कोई भी प्रदेश हो, प्रदेश का कोई भी जिला हो, ऐसा कोई स्थान नहीं रहा जहां समाज सेवा के लिए लोग आगे ना आए हो । शहरों में भी वंचितों के पोषण के लिए स्वयंसेवी संस्थाएं, समाजिक संगठन, हिन्दू संगठनों ने आगे आकर इनके भोजन की कमान संभाली। भिक्षावृत्ति करने वाले और दैनिक आजीविका चलाने वालों की चिंता में आवासीय लोगों ने जगह जगह व्यवस्था करके उनका पेट भरने का काम किया। आश्रित वर्ग के मजदूर जो महानगरों में निवास करते थे, उनके लिए यह महामारी संकट बहुत दुष्कर सिद्ध हुआ, काम तो मिला नही, साथ ही अभावों के जीवन से संघर्ष करते हुए उन्हें पलायन करके ग्रामीण की ओर आना पड़ा। जिसके कारण लॉक डाऊन में कई जगह दुविधा जनक स्थिति निर्मित हुई। इन प्रवासी लोगों के लिए प्रशासन या सरकार की अधिक तैयारी नही थी, फिर भी सामाजिक संस्थाओं ने पीने के पानी से लेकर चाय, नाश्ता व भोजन पैकेट जगह जगह उपलब्ध कराए। जाग्रत मीडिया जगत के कारण कई प्रदेश सरकारों ने मजदूरों के लिए बाद में बसें भी चलाई, जिससे वे अपने ग्रह जिलों तक पहुँच सकें, फिर भी कई लोग जो पहाड़ो व हाइवे से होते हुए निकल चुके थे पैदल ही कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा।  समाज का चिंतन इतना बड़ा कि ट्रांसपोर्ट का सामान लेकर आने जाने वालों, थैले उठाने वाले मजदूरों को भी भोजन पैकेट बनाकर दिए। आश्रितों की बहुत बड़ी संख्या के बाद भी असुविधा में बहुत से सकारात्मक स्त्रोत निकले जिन्होंने सेवा कार्यों में अपनी भूमिका निभाई। स्वयंसेवक संघ व विश्व हिंदू परिषद कार्यकर्ता ऐसे विकट समय में समाज के रक्षक बनकर आगे आये। संघ के आयाम सेवा भारती के द्वारा पूरे भारत में 50,48,088 लोगों को राशन सामग्री भजवाई गई, 3,17,12,800 भोजन पैकेट वितरित कर गए, 22446 यूनिट रक्तदान हुआ, 44,54,555 मास्क वितरित किए गए। इस कार्य में 3,42,712 स्वयंसेवक लगे हुए थे। आयुष मंत्रालय के निर्देशानुसार काड़ा बनाया गया और वितरण किया गया। मास्क के बढ़ते उपयोग और घटती उपलब्धता के चलते देश की मातृशक्ति ने इस समस्या को अपने हाथ में लिया। लाखों सिलाई मशीन एक साथ काम करने लगी। कई लाखों स्वनिर्मित मास्क समाज में उपलब्ध कराए गए। इसी प्रकार औषधीय सेनेटाइजर बनाने की विधि जन जन तक पहुचाई गई ताकि जैविक सेनेटाइजर अधिक से अधिक उपयोग किया जा सकें। काढा बनाने में साधु संत भी पीछे नही रहे, मध्यप्रदेश के धामनोद में संत आश्रम द्वारा काढा बनाकर पुलिस प्रशासन व कोरोना योद्धाओं को उपलब्ध कराया गया, धार जिले के छोटे से गांव कोणदा में भी काढा बना व पूरे गांव को पिलाया गया। कई स्थानों पर भोजन तैयार करके सन्तो ने पात्रों को भोजन कराया।  डॉक्टर, स्वास्थय कर्मी, सफाई कर्मियों के लिए पीपीई सूट की बढ़ती मांग और चीन से आये घटिया माल के कारण हम ऐसी स्थिति में आ गए थे कि लाखों पिपीई सूट तैयार किए जाना आवश्यक था, ऐसे समय भी स्वदेशी संस्थाओं व कंपनियों ने इसे लक्ष्य मानकर कार्य हाथों में लिया, अब 2 लाख पीपीई सूट प्रतिदिन निर्मित हो रहे है। संकट में ही हमें अपनी शक्तियों का ज्ञान होता है, यही ज्ञान भारत को हुआ है, देश जागा है, विदेशी कंपनियों का जाल से बाहर आकर स्वदेश की शक्ति को पहचाना है, चाहे मास्क, सेनेटाइजर हो या पीपीई सूट स्वदेशी कंपनियों ने अपनी भूमिका को जाना और जिम्मेदारी को उठाया है। इसी प्रकार अन्य साधनों के लिए भी हमें स्वावलंबी होने की जरूरत है, उससे अधिक समाज में स्व के जागरण की आवश्यकता थी, जिसे कोरोना ने पूरा किया।
 कोरोना एक बीमारी के रूप में आया तो परन्तु भारत के आध्यात्म व आस्था ने देश को सुरक्षित रखा है, सहयोग व सेवा की भावना सनातन धर्म का ही वह अंग है जिसे बचपन से परिवार सिखाता रहता है, बढा होकर यही बालक समाज सेवा में अग्रणी बनता है, परिवारों के संस्कार ही इस विपदा काल में आश्रितों के मुहं का निवाला बने है, विश्व का कल्याण हो यह नारा देश के गांव गांव में मंदिरों में यूँही नही कहा जाता, इस नारे से देश का बहुसंख्यक समाज विश्व व मानव जाति के कल्याण के लिए हर सेवा हर सहयोग के लिए तैयार रहने का भाव जाग्रत होता है, यही सकारात्मक जागरण सेवा के रूप में हमें देखने को मिला।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश